छत्तीसगढ़

अनियमितता का आरोप निराधार- रसिक परमार

रायपुर। छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष रसिक परमार ने 40 करोड़ की केन खरीदी, निजी कंपनियों को दुग्ध सप्लाई में कमीशन व अन्य वित्तीय अनियमितता के आरोप को निराधार बताते हुए चुनौती दी है कि मामले की उच्च स्तरीय जांच हो। उन्होंने कहा है कि उनके खिलाफ अनियमितता की यह चौथी-पांचवीं बार शिकायत है। जांच में उनकी यह शिकायत फर्जी पाई गई है। इसके बाद भी शिकायत का क्रम जारी है।
प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंपकर दुग्ध संघ में हुई अनियमितता पर कार्रवाई की मांग की। श्री शुक्ला ने बताया कि श्री परमार के कार्यकाल में केन खरीदी, निजी कंपनियों को दुग्ध सप्लाई में कमीशनखोरी सहित अनेक वित्तीय अनियमितता हुई है। 40 करोड़ रुपए के केन की खरीदी हुई, जिसमें कमीशनखोरी की शिकायत पीएमओ से की गई थी। जांच में तत्कालीन एमडी डॉ. एसएस गहरवार को दोषी पाया गया था। केन खरीदी घोटाले के समय भी श्री परमार वहां अध्यक्ष थे। श्री परमार व डॉ. गहरवार के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।
दुग्ध संघ अध्यक्ष श्री परमार ने प्रदेश कांग्रेस के आरोप पर कहा कि उनके खिलाफ अनियमितता की शिकायत पूरी तरह से निराधार है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर 30 मार्च 2016 को छत्तीसगढ़ शासन ने उप दुग्ध आयुक्त एकीकृत डेयरी विकास परियोजना कबीरधाम केके तिवारी को जांच अधिकारी नियुक्त कर पूरे मामले की जांच करवाई, जिसमें तत्कालीन प्रबंध संचालक एसएस गहरवार को दोषी पाया गया।
इस संबंध में तथ्यात्मक स्थित यह है कि छत्तीसगढ़ शासन पशुधन विकास मंत्रालय के पत्र 27 मई 2016 अनुसार, तथाकथित जांच अधिकारी के के तिवारी को आरोपी अधिकारी तथा महासंघ का अभिलेख एवं पक्ष लिए बिना, केवल शिकायतकर्ता के शिकायत के आधार पर एक पक्षीय जांच प्रतिवेदन सौंपने एवं पीएमओ व अन्य तीन को जांच प्रतिवेदन की प्रति देने के कारण उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्णय लेते हुए स्पष्टीकरण मांगा गया। श्री तिवारी द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर विभागाध्यक्ष द्वारा राज्य शासन को प्रेषित बिन्दुवार अभिमत में स्पष्ट उल्लेख है कि श्री तिवारी द्वारा शिकायतकर्ता से प्राप्त अभिलेखों के आधार पर ही जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया है।
उन्होंने बताया कि यह प्रतिवेदन पक्षीय है, दुग्ध महासंघ का पक्ष प्रस्तुत नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में यह प्रतिवेदन अपूर्ण था। जांच अधिकारी से अपूर्ण प्रतिवेदन की अपेक्षा नहीं की जाती। अत: उत्तर अमान्य योग्य है। यह भी उल्लेख है कि सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र विभाग के परिपत्र 20 अक्टूबर की कंडिका 2 का पालन नहीं करने से उत्तर अमान्य योग्य है। यही नहीं विभागाध्यक्ष ने अपने पत्र 16 मार्च 2016 अनुसार प्रेषित प्रतिवेदन अपूर्ण होने के कारण मूलत: वापस कर दिया था। क्योंकि महासंघ एवं अधिरोपित अधिकारी का पक्ष लिए बिना यह एक पक्षीय तथा शिकायतकर्ता द्वारा प्रेषित शिकायत के आधार पर जांच अधिकारी का व्यक्तिगत अभिलेख माना गया।

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