इस बार 5 की जगह 6 दिन मनाई जाएगी दिवाली, दीपावली की रात 10 बजे से बंद कर दिए जाएंगे मंदिर
22.10.22| दीपोत्सव इस बार 5 की जगह 6 दिन मनाया जाएगा। इस बीच 20 घंटे आस्था पर ग्रहण लगेगा। दरअसल, 25 तारीख को सूर्य ग्रहण है। ऐसे में मठ-मंदिरों के पट दीपावली यानी 24 अक्टूबर की रात 10 बजे से बंद कर दिए जाएंगे। इसके 21 घंटे बाद तक भक्तों को देव दर्शन की अनुमति नहीं रहेगी।
गौरतलब है कि धनतेरस के अलावा दीपावली के दिन भी लोग जमकर खरीदारी करते हैं। ऐसे में वाहन आदि की पूजा करवाने के लिए बड़ी संख्या में लोग मठ-मंदिरों में पहुंचते हैं। यह भीड़ अगले दिन भी नजर आती है। हालांकि, इस बार सूर्यग्रहण के चलते लोग ऐसा नहीं कर पाएंगे। दरअसल, 25 अक्टूबर की शाम 4.51 बजे से सूर्यग्रहण लग रहा है। सूतक इसके 12 घंटे पहले यानी सुबह 4.51 बजे से लग जाएगा। ग्रहण का मोक्ष शाम 5.29 को होगा। शुद्धिकरण के बाद देवालयों के पट शाम 7 बजे से खोले जाएंगे। पंडितों का कहना है कि 24 की पूरी रात लक्ष्मी पूजा की जा सकती है। 25 की शाम पूजा घर समेत पूरे घर का शुद्धिकरण करके ही पूजा करनी चाहिए।
इस बार दीपोत्सव की तिथियों को लेकर काफी उलझन की स्थिति है। इस बीच खंडग्रास सूर्यग्रहण ने लोगों को और भी संशय में डाल दिया है। महामाया मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला का कहना है कि अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर को भी है और 25 को भी। 25 को चूंकि सूर्यग्रहण है इसलिए दीपावली एक दिन पहले मनाई जाएगी। गोवर्धन पूजा और भाई दूज अपनी निर्धारित तिथियों में ही मनाई जाएगी। 25 तारीख को यदि सूर्यग्रहण नहीं होता तो धनतेरस की तरह दीपावली भी इस बार दो दिन मनाई जा सकती थी।
चंद्रमा जब पृथ्वी और सूर्य के बीच से होकर गुजरता है, तब पृथ्वी से देखने पर सूर्य नजर नहीं आता क्योंकि चंद्रमा उसे ढंक लेता है। सरल शब्दों में कहें तो सूर्य और पृथ्वी के बीच जब चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए चंद्रमा से ढंक जाता है, इसे ही सूर्य ग्रहण कहते हैं। यह घटना अक्सर अमावस्या तिथि पर ही होती है। इस बार आंशिक सूर्यग्रहण लग रहा है। इसके बारे में कहा गया है कि चंद्रमा, सूर्य के कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं।
हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक सूर्यग्रहण का संबंध राहू-केतु और अमृत पाने की कथा से है। कथा के अनुसार, रभानु नाम का राक्षस अमृत पीने सूर्य और चंद्र के बीच बैठ गया, लेकिन विष्णुजी ने उसे पहचान लिया। तब तक वह अमृत पी चुका था। अमृत उसके गले तक गया था। तभी श्रीहरि ने सुदर्शन से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। वह अमृत पी चुका था इसलिए मरकर भी जीवित रहा। इसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु। कथा के अनुसार, उस दिन से जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं, राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है।