छत्तीसगढ़

सरकार की मंशा आरटीआई एक्ट को कमजोर करना : कोमल अग्रवाल

कांग्रेस छात्र संगठन, एनएसयूआई आरटीआई सेल के राष्ट्रीय संयोजक ने कहां, सरकार की मंशा आरटीआई एक्ट को कमजोर करना
सरकार की नाकामियों घोटालो को छुपाने के लिए एक सुनियोजित षडयन्त्र
कांग्रेस छात्र संगठन, एनएसयूआई आरटीआई सेल के राष्ट्रीय संयोजक कोमल अग्रवाल ने केंद्रिय भाजपा सरकार व्दारा आरटीआई एक्ट में संशोधन बिल, 2019 को पारित करने को लेकर सवाल खडे़ किये है तथा कांग्रेस सरकार व्दारा देशवासियो को दिए गए अधिकारो को भाजपा सरकार व्दारा कमजोर करने की नीति बताया है। कोमल ने कहा कि भाजपा सरकार कांग्रेस पार्टी व्दारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 को कमजोर करते हुए भाजपा सरकार के घोटालो व कमजोरियों को छुपाने की कोशिश कर रही है जिससे सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना अधिकारी केंद्र सरकार के अधीन होंगे जिससे पारदर्शिता तो कम होगी ही व भाजपा सरकार के कमजोरियों को भी उजागर करने से रोका जायेगा। लोकसभा मे पारित किया गया आरटीआई एक्ट अमेंडमेंट बिल, 2019 देश के नागरिकों के अधिकारो का हनन है।
आरटीआई संशोधन बिल नही, आरटीआई निरस्त बिल पारित किया
आरटीआई आरटीआई सेल के राष्ट्रीय संयोजक कोमल अग्रवाल ने कहा कि भाजपा सरकार व्दारा लोकसभा मे पारित किया गया बिल संशोधन बिल नही, निरस्त करने की मंशा वाला बिल है जिसे लेकर कांगे्रस छात्र संगठन सख्त शब्दो में निंदा करती है यह बिल सूचना आयोग व अधिकारियों की ताकत को कम करेगा।
आरटीआई संशोधन बिल 2019 के अंतर्गत केंद्र सरकार को आरटीआई कमीशन के सूचना आयुक्तो के वेतन, समयावधि भत्ते व अन्य सुविधाओं का निर्णय लेने का अधिकार होगा। कोमल अग्रवाल ने कहां कि यह मौलिक अधिकारो को कमजोर करते हुए मौलिक रूप से सूचना आयोग के संस्थानों को कमजोर करेगा।
कैसे आरटीआई संशोधन बिल में दो बड़े बदलाव करेंगे एक्ट को कमजोर
राष्ट्रीय संयोजक कोमल अग्रवाल ने कहां कि आरटीआई संशोधन बिल 2019 मे प्रमुख रूप से दो बडे़ बदलाव लाए गये है जो सीधे रूप से पारदर्शिता को कम करने के साथ साथ सूचना आयोग के अधिकारो को केंद्रीय सरकार के अधीन लाकर निष्पक्षता को कम करते हुए सरकार की नाकामियों को उजागर करने में अड़ंगा बनेंगे।
पहला- संशोधन बिल 2019 सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त व सूचना अधिकारियों की समयावधि को केंद्रीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में करेगा जबकि पहले कांगे्रस सरकार व्दारा पारित बिलानुसार सूचना आयुक्त व अधिकारियों की समयावधि या तो 5 वर्ष या फिर 65 वर्ष की आयु सीमा पूरे करने तक है। इस बिल में कहां गया है कि केंद्र सरकार मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना अधिकारो के नीजी केस के अनुसार समयावधि का निर्णय लेगा, हांलाकि अभी कोई समयावधि निश्चित नही की है।
दूसरा- संशोधन बिल, 2019 मे मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना अधिकारियों के वेतन का निर्णय लेना भी केंद्रीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में होगा जबकि कांग्रेस सरकार व्दारा पारित एक्ट के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त व अधिकारियों का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तो के बराबर है। वही संशोधन बिल में यह भी कहां गया है कि यदि कोई कंेद्रीय सूचना अधिकारी व आयुक्त अपनी पहली नौकरी की कोई पेंशन या अन्य सुविधा का लाभ ले रहा है तो उनका वेतन उनकी पेशन की राशि के बराबर कम करके दिया जायेगा।
अब सूचना आयोग कैसे रहेंगे निष्पक्ष व आजाद
कोमल ने कहां कि जब केंद्रीय सरकार ही सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त व मुख्य सूचना अधिकारियांे के वेतन से लेकर समयावधि तक सुविधाओ की निर्णय लेगी तो यह सूचना आयोग की निष्पक्षता को खत्म करेगा। यदि कोई ऐसी सूचना हो जिसे लेकर सरकार की नाकामी व घोटाले को उजागर किया जा सके, उसे भी उजागर नही किया जा सकेगा क्योकिं सूचना देने वाला आयोग व संस्थान ही सरकार के अधीन होगा। यदि ऐसी संस्थानो से आजादी व अधिकारो को ही छिन लिया जायेगा तो ऐसी संस्थानो की महत्वता को खत्म करने का एक निंदनीय प्रयास कहलाएगाा। कोमल ने कहां कि इस बिल के पारित होने को लोकतंत्र के लिए काला दिवस कहना गलत नही होगा।
कोमल अग्रवाल

Related Articles

Back to top button