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मध्यप्रदेश : सरकारी कर्मचारियों के RSS की शाखा में जाने पर लगेगा प्रतिबंध

भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में आने वाले दिनों में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस और भाजपा-संघ के बीच बड़ा सियासी टकराव देखने को मिल सकता है।
दरअसल, चुनाव के वक्त कांग्रेस ने अपने वचन-पत्र में कहा था कि पार्टी सत्ता में आते ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के जाने पर प्रतिबंध और सरकारी कैंपस में संघ की शाखाओं के लगाने पर बैन लगाएगी।
अब जबकि मध्यप्रदेश में कैबिनेट गठन के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार पूरी तरह फॉर्म में आ गई है, तब सरकार ने संघ को लेकर अपने वचन को पूरा करने की तैयारी कर ली है।
कमलनाथ सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार के आदेश को आधार बनाकर बैन लगाने की तैयारी कर ली है। सामान्य प्रशासन विभाग ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की शाखाओं में जाने और सरकारी परिसरों में संघ की शाखा लगाने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे जल्द ही सरकार की मंजूरी के बाद लागू किया जा सकता है।
कमलनाथ सरकार मीसाबंदियों की पेंशन को खत्म करने की भी तैयारी कर रही है, जिस पर अंतिम फैसला मुख्यमंत्री कमलनाथ को करना है। अगर सूबे की सियासत की बात करें तो कमलनाथ सरकार अगर संघ की शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के जाने पर और शाखाओं पर बैन लगाने का आदेश जारी करती है तो इस सूबे में बड़ा सियासी टकराव देखने को मिलेगा।
चुनाव से ठीक पहले जब कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में लोगों से यह वादा किया था तो भाजपा ने कड़ा ऐतराज जताया था, वहीं कांग्रेस ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए और गुजरात में भी इस तरह के फैसले को लागू होने का हवाला देकर भाजपा पर तगड़ा पलटवार किया था।
ऐसा नहीं है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार संघ को लेकर पहली बार इस तरह को कोई आदेश जारी करने की तैयारी में है। इससे पहले दिग्विजय सिंह सरकार के समय भी संघ की शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के जाने पर रोक लगाई गई थी।
दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए सरकार ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं अन्य ऐसी संस्थाओं के कार्यकलापों में भाग लेना या उससे किसी रूप में सहयोग करना मध्यप्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम का उल्लंघन माना जाएगा।
दिग्विजय सिंह सरकार के इस फैसले को बाद में भाजपा के सत्ता में आने के बाद साल 2006 में शिवराजसिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद समाप्त कर दिया गया था, वहीं कांग्रेस ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया था।
चुनाव के वक्त कांग्रेस ने संघ की शाखाओं में जाने वाले कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी से दूर रखने के लिए चुनाव आयोग से भी शिकायत की थी। इसके साथ ही संघ की ओर झुकाव रखने वाले सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया था।
अब देखना होगा कि जब कमलनाथ सरकार संघ को लेकर कोई बड़ा फैसला लेती है तो संघ और भाजपा का क्या रिएक्शन होगा।

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