बिलासपुर.छत्तीसगढ़ को प्रथम मुख्यमंत्री देने वाले बिलासपुर जिले को इस बार अपार बहुमत से बनने वाली कांग्रेस सरकार ने ठेंगा दिखा दिया है लेकिन भाजपा ने एकमात्र अपने नेता प्रतिपक्ष का पद भी बिलासपुर को दे कर उसके हक की आवाज उठाने का मौका दिया है. बिलासपुर जिले को राज्य बनने के बाद से वीवीआइपी माना जाता रहा है.
प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े जिले यानी राजधानी के बाद न्याय धानी बिलासपुर का ही नंबर आता है. यहां हाईकोर्ट, एसईसीएल और रेलवे जोन की वजह से इस इलाके को वैसे भी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है. छत्तीसगढ़ राज्य नवंबर 2000 में बनने के बाद यहां कांग्रेस की सरकार बनी थी.तब उसके मुखिया यानि प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के रूप में बिलासपुर जिले से थे.
इसके बाद हुए चुनाव में भाजपा की सरकार बनी तब बिलासपुर जिले से शहर विधायक अमर अग्रवाल को वित्त मंत्रालय मिला और खजाने की चाभी मिली. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष की आसंदी बिलासपुर जिले के खाते में गई.इसके बाद लगातार बिलासपुर जिले का सियासी वजन कम होता गया. तीसरे कार्यकाल में बिलासपुर जिले को एक मंत्री से काम चलाना पड़ा. इस बार पांचवी विधानसभा में कांग्रेस की सरकार तो बनी लेकिन इसमें बिलासपुर जिले को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका.
यह है सियासी वजह
पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एक तरफ अपार बहुमत मिला. बस्तर,जशपुर, सरगुजा इलाके में भाजपा का एक के बाद एक सूपड़ा साफ हो गया लेकिन इस माहौल से ठीक प्रतिकूल बिलासपुर जिले ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया.
बिलासपुर की 7 विधानसभा सीटों में से दो विधानसभा सीट ही कांग्रेस जीत पाई. बल्कि उससे ज्यादा तीन विधायक बिलासपुर जिले से भाजपा को मिले.शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने बिलासपुर जिले को प्रतिनिधित्व नहीं दिया और भाजपा ने अपनी बढ़त बनाए रखने वाले बिलासपुर जिले को नेता प्रतिपक्ष के रूप में धरमलाल कौशिक को बना करके एक बार फिर बिलासपुर के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में ही रहने के संकेत दिए हैं.