तीसरी बार कर्ज ले रही भुपेश सरकार, बेचेगी हज़ार करोड़ का बांड
रायपुर। भारी-भरकम वादों के साथ छत्तीसगढ़ की सत्ता में आई राज्य की नई-नवेली कांग्रेस सरकार फिर कर्ज की कतार में खड़ी है। सरकार अपना एक हजार करोड़ रुपए का प्रतिभूति (सिक्योरिटी बांड) बेच रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के माध्यम से सरकार इसके लिए बोली लगवा रही है।
सरकार इसे 6 वर्ष में चुकाने का वादा कर रही है। इस बांड का फैसला 5 फरवरी को होगा। महीनेभर में यह तीसरा मौका है, जब राज्य सरकार अपना बांड बेच रही है। जनवरी में सरकार ने दो बार में 3500 करोड़ का बांड बेचकर कर्ज लिया है। राज्य सरकार बीते चार महीने से लगातार बांड बेचकर रकम जुटा रही है।
5 महीने में 7 हजार करोड़ का कर्ज
छत्तीसगढ़ सरकार 5 महीने में 7 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। इनमें जनवरी में दो बार में 1500 व 2000 हजार करोड़ का कर्ज भी शामिल है। इन दोनों कर्ज को सरकार साढ़े सात से करीब आठ फीसद ब्याज दर के साथ चुकाएगी। राज्य सरकार पर अब तक कर्ज का भार 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक पहुंच गया है।
कतार में राजस्थान व एमपी समेत 19 राज्य
छत्तीसगढ़ के साथ ही 18 और राज्य भी अपनी प्रतिभूमि की बोली लगवा रहे हैं। इनकी कुल कीमत 22 हजार 600 करोड़ रुपए है। इनमें कांग्रेस शासित मध्यप्रदेश और राजस्थान भी शामिल है। दोनों राज्य क्रमश: हजार और 1500 करोड़ का कर्ज ले रहे हैं। इसके साथ ही आंध्र, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, झारखंड, उत्तरप्रदेश, गोवा व गुजरात समेत अन्य शामिल हैं।
लगातार ले रहे कर्ज
सरकार 2014-15 से जनवरी 2018 तक रिजर्व बैंक से 18350 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। 2014 में चार किस्तों में 2200, 2015 में 6 किस्तों में 5000 कराेड, 2016 में 3 किस्तों में 1850 करोड़ व 2017 में पांच किस्तों में 7200 करोड़ लिए गए। वहीं 2018 में करीब 2200 करोड़ से अधिक का कर्ज लिया गया है।
प्रभावित होगा विकास कार्य
सरकार के बांड बेचने और बार- बार कर्ज लेने से विकास कार्यों पर असर पड़ सकता है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार सरकार बांड बेचकर जो लोन ले रही है उसे ब्याज सहित चुकाना पड़ेगा। इसके लिए सरकार को स्वयं पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इससे विकास कार्य विशेष रुप से अधोसंरचना विकास के काम प्रभावित हो सकते हैं।
नए बजट पर पड़ेगा असर
सरकार के बार- बार कर्ज लेने का असर अप्रैल 2019 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष और बजट पर पड़ सकता है। जीएसटी लागू होने के बाद से राज्य सरकारों के पास अब टैक्स बढ़ाकर राजस्व हासिल करने की संभावना लगभग खत्म हो गई है। ऐसे में सरकार आबकारी या कुछ अन्य सेवाओं पर सेस लगा कर फंड की व्यवस्था करने की कोशिश कर सकती है।
इस वजह से लेना पड़ रहा कर्ज
सत्ता में आते ही कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी और धान 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर खरीद के चुनावी वादे को पूरा करने का एलान किया। सरकार करीब 6100 करोड़ का कर्ज माफ कर रही है। वहीं, धान का समर्थन मूल्य 2500 करने के लिए सरकार को करीब 5400 करोड़ से अधिक की जरुरत थी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार 300 रुपए प्रोत्साहन राशि देने के लिए 2700 करोड़ की व्यवस्था कर गई थी। इस वजह से मौजूदा सरकार को भी करीब इतने और की व्यवस्था करनी पड़ रही है। दोनों मिलाकर सरकार को लगभग 8875 करोड़ की जरुरत है।