छत्तीसगढ़

सुहागिनों ने अखण्ड सौभाग्य, संतान के कल्याण के लिए की वट सावित्री की पूजा

रायपुर। सुहागिन महिलाएं सोमवार को वट सावित्री व्रतोपवास पूजन वट वृक्ष के नीचे बैठकर किया। इस व्रत को प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या को भीषण गर्मी व नवतपा में महिलाएं व्रत रखती हैं। राजधानी में बूढ़ापारा, सदरबाजार, और कई स्थानों पर महिलाओं की भीड़ पूजा के लिए वट वृक्षों के नीचे भीड़ लगी रही। यह व्रत बड़े धूमधाम से महिलाएं व्रत वृक्ष के नीचे करती है।
कहा जाता है सुहागिन महिलाएं अखण्ड सौभाग्य, संतान के कल्याण व परिवार की समृद्वि के लिए इस व्रत को रखती है। इसके पीछे यह कथा प्रचलित है। कालांतर में ऐसी कथा है कि एक ऋषि दंपती के संतान नहीं थी। ऋषि दंपती की तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए और संतान की प्राप्ति के लिए आर्शीवाद दिया। 9 महीने बाद सुंदर कन्या का जन्म हुआ। इसका नाम सावित्री रखा गया। यह कन्या जब 5 वर्ष की हुई तो इसने 5 वटवृक्ष रोपित किए तथा इसमें प्रतिदिन साफ -सफाई कर, जल अर्पित कर उसकी पूजा करती थी। इसी गांव में एक ब्राह्मण दंपती था, इनके सात पुत्र थे।
ब्राह्मणी प्रतिदिन चावल बनाकर उसका गर्म पानी वटवृक्ष की जड़ में डाल देती थी। इसी वृक्ष के नीचे एक सर्प का बिल था, जिसमें सांप अंडे देती थीं, उनका अण्डा गर्म पानी से जलकर नष्ट हो जाता था। इस प्रकार ब्राह्मणी सर्पदंपती के होने वाले संतान को मार डालती थी। इस ब्राह्मण के ज्येष्ठ पुत्र का विवाह हुआ। वर-वधु बारात वापस आकर वटवृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे, तब नागिन गुस्से से ब्राह्मण के पुत्र को डस लिया कि तूने मेरे संतान को मारा है, इसलिए मैं तेरे संतान को मांरूगी।
यही प्रक्रिया पुत्रों के विवाह में दोहराया जाता है। ब्राह्मणी का 7वें संतान का नाम सत्यवान था, जिसका विवाह सावित्री से तय किया जाता है, लेकिन ब्राह्मणी बोली मेरे संतानों को सर्प डंस लेता है, कैसे विवाह करूंगी। विवाह पश्चात सत्यवान सावित्री वटवृक्ष के नीचे विश्राम करते रहते हैं, तब सर्प सत्यवान को डंस लिया वह तड़पने लगा। चालाक कन्या सावित्री दुधलाई अपने पैर के नीचे दबा लेती है। सर्प जैसे ही दुधलाई खाने आता है, तब सावित्री सर्प को अपने पैर के नीचे दबा लेती है। सर्प आकर सावित्री से अपने पति को वापस देने की मांग करती है, तब सावित्री भी अपने पति सत्यवान को वापस जीवित करने की मांग करने लगती है। अंततोगत्वा क्षमायाचना करते हुए दोनों न केवल एक-दूसरे के पति को छोड़ देते हैं, बल्कि डसे हुए 6 अन्य ब्राह्मण पुत्रों को भी नाग-नागिन जीवित कर देते हैं। ऐसी ही अनेक छोटी-छोटी कथाएं पति व संतान के रक्षा से संबंधित है। इसीलिए सत्यवान सावित्री की पूजा कर पति व संतान की रक्षा व अखण्ड सौभाग्यवती होने का यह व्रतोपवास कर महिलाएं ब्राह्मण व अन्य सुहागिनों से आर्शीवाद प्राप्त करती हैं।

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