छत्तीसगढ़

ध्वनि प्रदूषण के बाद अस्पतालों में बढ़ जाते हैं 10 फीसदी मरीज

सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट का सख्त निर्देश, पालन नहीं

रायपुर। शहर के वरिष्ठ नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता ने ध्वनि प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि इससे बहरेपन के साथ कई बीमारियां हो सकती हैं। धार्मिक जुलूस और बड़े आयोजनों में कानफोड़ू साउंड के बाद अस्पतालों में उससे पीडि़त मरीजों की संख्या 10 फीसदी बढ़ जाती है। यह मानव शरीर के लिए खतरनाक है। सुप्रीम कोर्ट के साथ ही अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट ने इस पर सख्त निर्देश दिए हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर उसका पालन नहीं किया जा रहा है।
महापौर प्रमोद दुबे ने कल मीडिया से चर्चा में चिंता व्यक्त करते हुए बताया था कि गणेश विसर्जन झांकी के दौरान डीजे की कानफोडूूूू़ साउंड से शहर के दो बुजुर्गों की मौत हो गई थी। उन्हें यह पता चल गया था, लेकिन वे मजबूर थे। उनके इस खुलासे के बाद ‘छत्तीसगढ़’ ने शहर में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण पर वरिष्ठ नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता से चर्चा की। डॉ. गुप्ता ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण पर जन स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। मनुष्य के लगभग सभी शारीरिक अंगों में उसका दुष्प्रभाव देखने में आता है। शुरूआत में कान में सीटी बजना और सुनाई कम देना उसका पहला लक्षण है। इसके बाद ध्वनि प्रदूषण से पीडि़त मरीजों में चिड़चिड़ापन, अधिक गुस्सा आना, ब्लड प्रेशन बढऩा, मांसपेशियों में संकुचन, सिरदर्द, थकान, पेट में अत्यधिक अम्लस्त्राव से एसिडिटी, बदहजमी, सूक्ष्म कार्य करने की क्षमता में कमी के लक्षण देखे जाते हैं। इसके अलावा एलर्जी, अस्थमा, ह्दय रोग, मानसिक विकार आदि भी सामने आते हैं।
उन्होंने कहा कि एनजीटी ने जुलाई 2016 में वाहनों में मल्टीटोन व प्रेशर हॉर्न को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। यह नियम महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली में कड़ाई से लागू किया गया है, लेकिन राज्य में इस नियम को लागू करने पर कड़ाई नहीं बरती जा रही है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि ध्वनि पर्यावरण प्रोटेक्शन नियम 1986 के अंतर्गत सभी ध्वनि उत्सर्जन करने वाले यंत्रों की मानक सीमा तय की गई है। पर्यावरण में ध्वनि प्रदूषण पैदा करने वाले यंत्रों में सभी मोटरयान, जनरेटर सेट, भवन निर्माण में उपयोग होने वाली मशीने और मोटरयान से हॉर्न शामिल हैं। केंद्रीय मोटरयान अधिनियम 1989 में संशोधन कर सभी प्रकार के प्रेशर हॉर्न जो 106 डेसीबल से अधिक ध्वनि देते हैं, को प्रतिबंधित कर दिया गया है। औद्योगिक क्षेत्र में भी ध्वनि प्रदूषण को लेकर मापदंड तय किए गए हैं, लेकिन वहां भी उसका पालन नहीं किया जा रहा है।
नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. गुप्ता ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण जन स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। यह एक तरह से साइलेंट किलर की तरह है। ध्वनि प्रदूषण के बाद अस्पतालों में आने वाले मरीजों की संख्या 10 फीसदी बढ़ जाती है। कई बार ध्वनि प्रदूषण से लोगों की हालत बिगडऩे के साथ ही उनकी मौत तक हो सकती है। इसके बाद भी शोरगुल, ध्वनि प्रदूषण को लेकर प्रशासन की ओर से सख्ती नहीं बरती जा रही है। उनका मानना है कि ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए प्रशासनिक के साथ सामाजिक पहल जरूरी है।

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