सादगी, समर्पण और संघर्ष का त्रिवेणी संगम हैं डॉ. रमन सिंह

विशेष – अरुण कुमार बिसेन

रायपुर। भारतीय राजनीति के उस विशाल आकाश में, जहां सत्ता की चमक अक्सर सेवा की सादगी को ढक लेती है, वहाँ कुछ नाम ऐसे भी हैं जो पदों की गरिमा से नहीं, बल्कि अपने चरित्र की सुगंध से पहचाने जाते हैं। डॉ. रमन सिंह ऐसा ही एक नाम है जो राजनीति में सादगी, समर्पण और संघर्ष का त्रिवेणी संगम हैं। डॉ रमन एक ऐसा नाम जो छत्तीसगढ़ की माटी में इस तरह रचा-बसा है जैसे धान के खेतों में फैली हरियाली हो।
स्टेथोस्कोप थामने वाले हाथों ने जब राज्य की बागडोर संभाली, तो उन्होंने साबित किया कि राजनीति भी एक इलाज है शोषितों, वंचितों, पीड़ितों की पीड़ा दूर करने का, अव्यवस्था व अराजकता की बीमारियों का छत्तीसगढ़ के 5000 दिन से अधिक मुख्यमंत्री रहने वाले डॉ रमन सिंह का पूरा जीवन एक प्रेरणा है। उनके जीवन का सफर किसी फिल्म की क्रिप्ट सा लगता है, क्योंकि पार्षद से मुख्यमंत्री बनने का सफर यूं तो आसान नहीं होता लेकिन उनके जनसेवा के जुनून ने इस सफर को परिश्रम की पराकाष्ठा और प्रयत्नों की परिसीमा से संभव कर दिया।
राजनांदगांव के कवर्धा (ठाठापुर) की उस पावन धरती पर, जहां सादगी और संस्कार हवा में घुले थे, 15 अक्टूबर 1952 को एक ऐसे बालक ने जन्म लिया जो आगे चलकर लाखों दिलों की धड़कन बनेगा डॉ. रमन सिंह । साधारण परिवार में जन्मे रमन का बचपन मिट्टी की उस खुशबू में बीता जिसमें संस्कार, परिश्रम और सेवा घुली थी। शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वे छत्तीसगढ़ के भाग्य विधाता बनेंगे पर जीवन की शुरुआत से ही उनमें थी अदम्य जिजीविषा, सेवा का संस्कार और जनता के दर्द को समझने की वह संवेदनशीलता जो किताबों से नहीं, जीवन से सीखी जाती है। MBBS का सपना उम्र की सीमा ने रोक दिया, पर उन्होंने इसे रुकावट नहीं, अवसर समझा। BAMS में प्रवेश लिया, डॉक्टर बने और जीवन को सेवा का मार्ग बना लिया। मरीजों की सेवा करते हुए भी उनकी दृष्टि समाज की बड़ी बीमारियों गरीबी, असमानता और विकास की कमी पर थी।
कवर्धा में उन्होंने अपना क्लिनिक खोला, पर एक दिन कुछ ऐसा देखा जिसने उनकी पूरी जीवन दिशा बदल दी। कई गरीब ऐसे थे, जिनके पास मामूली फीस देने तक के पैसे नहीं थे। बीमारी उनके दरवाजे पर दस्तक देती थी, लेकिन इलाज के दरवाजे उनके लिए बंद थे। डॉ. रमन का हृदय पिघल गया। उन्होंने एक फैसला लिया जो उनकी जिंदगी की पहली बड़ी सेवा यात्रा बन गई शनिवार को मुफ्त इलाज।
हर शनिवार उनका क्लिनिक गरीबों, आदिवासियों और जरूरतमंदों से भर जाता। कोई पैसा नहीं, कोई भेदभाव नहीं, बस इलाज और इंसानियत डॉ. रमन की इस निःस्वार्थ सेवा को देख वहां के गरीब आदिवासियों ने उनका नाम रख दिया ‘शनिचरी डॉक्टर’ यह उपाधि किसी विश्वविद्यालय ने नहीं दी थी, यह उन्हें मिली थी उन आंखों से जिनमें आभार के आंसू थे, उन हाथों से जो दुआओं में उठते थे।
समय था 1999 का तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा कुशाभाऊ ठाकरे ने डॉ. रमन सिंह को राजनांदगांव से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा। लेकिन यह कोई सामान्य चुनाव नहीं था यह एक युद्ध था। सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा थे, जिन्हें चुनाव से पहले ही लोग विजयी मान चुके थे। राजनीतिक जानकार कह रहे थे कि डॉ रमन सिंह का जीतना असंभव है। लेकिन सामने थे डॉक्टर रमन, जिन्हें हर मर्ज का इलाज आता था, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी थी।
उस चुनाव में उन्होंने अथक परिश्रम किया। सुबह से रात तक गांव-गांव, घर-घर उनके पैरों में छाले पड़ गए, लेकिन इरादे डगमगाए नहीं जब परिणाम आए तो हर कोई सन्न रह गया। डॉक्टर रमन सिंह ने 26 हजार वोटों से जीत दर्ज की यह केवल एक चुनावी जीत नहीं थी, यह विश्वास की जीत थी, समर्पण की जीत थी और इसका इनाम भी उन्हें मिला वे केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए।
छत्तीसगढ़ भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनना उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ था। उस समय प्रदेश में कांग्रेस का वर्चस्व था, जोगी सरकार के खिलाफ जनता में असंतोष तो था, लेकिन विकल्प की तलाश भी थी। भाजपा के कार्यकर्ताओं के मन में हताशा थी, संगठन बिखरा हुआ था। डॉ. रमन सिंह ने संगठन को एक नया जीवन दिया। उन्होंने प्रदेश के कोने-कोने में जाकर कार्यकर्ताओं से संवाद किया, उनके मन में जमी हताशा को उम्मीद में बदला, उनकी टूटी हुई कमर को संगम फिर से सीधा किया।
उनकी वाणी में जादू था मृदु लेकिन प्रभावशाली, सरल, लेकिन गहरी और फिर आया वह ऐतिहासिक क्षण 2003 का विधानसभा चुनाव। लोगों को भरोसा कम था, अपने लोग ही दबी जुबान से कहते थे कि सरकार नहीं बनेगी। राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस की जीत के आंकड़े गिना रहे थे। लेकिन डॉ. रमन सिंह को अपनी जनता पर अपने कार्यकर्ताओं पर, और सबसे बढ़कर अपने संकल्प पर विश्वास था। जब परिणाम आए, तो छत्तीसगढ़ की जनता ने स्पष्ट संदेश दिया। डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की।
7 दिसंबर 2003 यह तारीख छत्तीसगढ़ के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी गई। जिस दिन वे मुख्यमंत्री की शपथ लेने गए, उस दिन उनकी आंखों में आंसू थे जिम्मेदारी के संकल्प के, और जनता के विश्वास के उन आंसूओं में छत्तीसगढ़ के सपने तैर रहे थे, उन आंसूओं में एक नए युग का आगमन था। फिर सेवा और समर्पण का यह कारवां 2008 और 2013 में भी जीत के साथ आगे बढ़ता गया। तीन बार लगातार मुख्यमंत्री बनना, यह केवल राजनीतिक सफलता नहीं, जनता के अटूट विश्वास का प्रमाण था।
डॉ. रमन सिंह का 15 साल का मुख्यमंत्रित्व काल केवल शासन नहीं थायह एक मिशन था, एक यज्ञ था छत्तीसगढ़ के कायाकल्प का। उनकी सोच साफ थीविकास सबके लिए हो, हर वर्ग तक पहुंचे, और धरातल पर दिखे। 2003 में जब उन्होंने शपथ ली तब छत्तीसगढ़ के हालात बहुत बेहतर नहीं थे। मध्यप्रदेश से अलग हुए मात्र 3 साल हुए थे, प्रदेश अभी संभल ही रहा था। ऊपर से कांग्रेस सरकार के 3 साल के भ्रष्टाचार और अपराध ने इसे और गर्त में ला दिया था। डॉ. रमन ने इसे चुनौती के रूप में लिया और छत्तीसगढ़ को एक नई पहचान देने का संकल्प लिया।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा’ कहा जाता है, लेकिन विडंबना यह थी कि किसानों की हालत दयनीय थी। बस्तर जैसे क्षेत्रों में भूख से मौत जैसी दुखद घटनाएं होती थीं। कुपोषण से बच्चे मर रहे थे, माताओं की आँखों में आँसू थे। यह दृश्य डॉ. रमन के लिए असहनीय था। एक चिकित्सक के रूप में, एक इंसान के रूप में, और मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने संकल्प लिया ‘छत्तीसगढ़ में कोई भी बच्चा भूखे पेट नहीं सोएगा। 2008 में उन्होंने एक ऐसी योजना शुरू की जो छत्तीसगढ़ की पहचान बन गई, जो देश भर में चर्चा का विषय बनीगरीबों को मात्र 2 रुपये प्रति किलो की दर पर चावल उपलब्ध कराना। यह केवल एक सरकारी योजना नहीं थी यह उनकी संवेदनशीलता का प्रमाण था, यह उनके हृदय की आवाज थी। बाद में इसे और सुलभ बनाते हुए अंत्योदय कार्ड धारकों को 1 रुपये और BPL परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो चावल दिया जाने लगा।
जब एक गरीब माँ अपने बच्चों को पेट भर भोजन करा पाती है, जब एक मजदूर को यह चिंता नहीं रहती कि रात को क्या खाएगा, जब एक बुजुर्ग के चेहरे पर संतोष की मुस्कान आती हैतो उनकी आंखों में जो आभार होता है, वही डॉ. रमन सिंह की असली उपलब्धि है। लोगों ने उन्हें एक नया नाम दिया ‘चाउर वाले बाबा’ (चावल वाले बाबा) । शनिचरी डॉक्टर अब चाउर वाले बाबा बन गए थे। यह उपाधि किसी पुरस्कार समारोह में नहीं मिली थी, यह मिली थी उन लाखों परिवारों की दुआओं से जिनके घरों में चूल्हा जलने लगा था। उनकी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य खाद्य सुरक्षा योजनाओं ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता दिलाई। देश के अन्य राज्यों ने छत्तीसगढ़ मॉडल को अपनाना शुरू किया। लेकिन डॉ रमन के लिए यह कोई राजनीतिक उपलब्धि नहीं थीयह उनके जीवन के उस संकल्प की पूर्ति थी जो उन्होंने शनिचरी डॉक्टर के रूप में देखा था।
आज जब डॉ. रमन सिंह अपने जीवन के 73वें वर्ष में हैं, तब भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उनकी आँखों में अब भी वही चमक है, हृदय में वही धड़कन छत्तीसगढ़ के विकास की जनता की भलाई की। समय ने उनके बालों को सफेद कर दिया है, लेकिन उनके इरादे अब भी पहाड़ों जितने मजबूत हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं है। यह जनसेवा का एक माध्यम है, समाज परिवर्तन का एक हथियार है। यह सिखाता है कि सच्ची ताकत पद में नहीं, चरित्र में होती है। यह बताता है कि जब आप ईमानदारी से काम करते हैं, जब आप जनता के दुख-दर्द को अपना समझते हैं, तो जनता आपको कभी भूलती नहीं। सत्ता आती-जाती है, लेकिन प्रेम और सम्मान हमेशा के लिए रह जाता है।
छत्तीसगढ़ के इतिहास में डॉ. रमन सिंह का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगाउनका विलक्षण व्यक्तित्व जिसने राजनीति को सेवा का पर्याय बनाया, जिसने विकास को जनता तक पहुँचाया, और जिसने साबित किया कि सादगी और संवेदनशीलता ही सच्ची महानता की निशानी है। वे शनिचरी डॉक्टर से शुरू हुए, चाउर वाले बाबा बने, और आज भी जन-जन के दिलों में बसे हैं।
लेखक – विशेष सचिव, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ विधानसभा



