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बलौदाबाज़ार हिंसा : मुनादी, सोशल मीडिया और भ्रम का प्रयोग……

बलौदाबाज़ार में कलेक्टोरेट को आग के हवाले कर दिया जाता है- सरकारी और निजी संपत्ति स्वाहा। गाड़ियों को फूंक दिया जाता है- कईयों की भावनाएं आहत। तोड़-फोड़ और आगजनी की घटना किसी फ़िल्म की कहानी से कम नहीं लगती। क्योंकि जिस तरह से घटना को अंजाम दिया गया है, वो कई सवाल पैदा कर रहा है! ख़ैर समाज के प्रमुख लोग कह रहे हैं कि- इससे हमारा कोई सारोकार नहीं, इस घटना से हम भी व्यथित हैं, ये असामाजिक तत्वों का किया धरा है। मुख्यमंत्री समाज के प्रमुखों के साथ बैठक करते हैं और न्यायिक जांच पर हामी भरी जाती है। कांग्रेस भी जांच समिति का गठन करती है और घटनास्थल में प्रत्यक्षदर्शियों से बात करके इस मामले की सच्चाई जानने की कोशिश में….. गुरूवार देर रात वहां के तत्कालीन कलेक्टर और एसपी को निलंबित कर दिया जाता है। 16 जून तक ज़िले में धारा 144 लागू है और कई तरह की चर्चा…

आग भड़केगी, तो लोग भी भड़केंगे
15 मई को जैतखाम तोड़-फोड़ मामले में 7 जून मुंगेली में आक्रोश रैली निकली, उसी दौरान स्पष्ट हो गया था कि- 10 जून को बलौदाबाज़ार में महाआंदोलन होगा। जब बड़ी संख्या में आक्रोश रैली निकली, तो यहां की आग में कईयों ने अपने मतलब का हाथ सेक लिया और सामाजिक हित की बात करके, युवाओं के मन में आग भड़कानी शुरू की। ये ठीक वैसा ही था, जैसा हिटलर का फ़ार्मूला.. हम यही नहीं समझ पा रहे कि- हमें सिर्फ़ एक ज़रिए की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। बाबा गुरु घासीदास ने सत्य और अहिंसा का सन्देश दिया, तो कैसे उनके सिद्धांतों को किनारे करके ऐसी हिंसक घटना को अंजाम दे दिया गया! कहते हैं- गुस्से की आग में बात डालो, हर तरफ़ शोले ही शोले और बिलकुल ऐसा ही हुआ।

सामजिक बैठक की आड़ में धोखा
गांव गांव मुनादी कराई गई- बलौदाबाज़ार चलो, बलौदाबाज़ार चलो। सोशल मीडिया में बलिदानी गुरु बालकदास की फ़ोटो में महाआंदोलन का सन्देश लिखा गया। ”सत के अंजोर” ये शीर्षक लोगों को भाने लगा और सब तैयारी में जुट गए। इधर मौक़े की तलाश में बैठे लोगों का काम आसान हो गया, क्योंकि युवाओं ने अपने अपने तरीके से वीडियो बनाकर पोस्ट करना शुरू किया। सोशल मीडिया में तो जैसे बाढ़ सी आ गई और कमेंट में ही लड़ाई झगड़े होने लगे। जो सिर्फ़ सामाजिक बैठक का मुद्दा था, वो अब आपसी मतभेद का कारण बनता जा रहा था। दिल में गुबार इतना बढ़ चुका था कि- कहीं न कहीं तो उसको फूटना ही था। 10 जून को वो फूटा और उसने उग्रता की हदें तक पार कर डाली।

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