Private School fees Hike 2025: निजी स्कूलों की मनमानी, बढ़ती फीस, महंगी किताबें और यूनिफॉर्म से अभिभावक परेशान
Private School fees Hike 2025: नई शिक्षा सत्र 2025-26 की शुरुआत के साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी एक बार फिर सामने आई है। फीस में भारी वृद्धि...

12, April, 2025 | Private School fees Hike 2025: नई शिक्षा सत्र 2025-26 की शुरुआत के साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी एक बार फिर सामने आई है। फीस में भारी वृद्धि के साथ-साथ किताबों, यूनिफॉर्म और स्टेशनरी की कीमतें भी आसमान छू रही हैं, जिससे अभिभावकों की आर्थिक परेशानियां बढ़ गई हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्कूल प्रबंधन अभिभावकों को चुनिंदा दुकानों से ही किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं, जहां कीमतें सामान्य बाजार दर से कई गुना अधिक हैं।
मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक बन गई है। प्री-नर्सरी कक्षाओं की सालाना फीस 15 से 25 हजार रुपये तक पहुंच गई है, जबकि उच्च कक्षाओं की फीस इससे भी ज्यादा है। इसके अलावा, हर दो-तीन साल में पाठ्यपुस्तकों और यूनिफॉर्म में बदलाव किया जाता है, जिससे अभिभावकों पर बार-बार नए खर्चों का बोझ बढ़ता रहता है।
बढ़ती फीस और महंगी स्टेशनरी से अभिभावकों की मुश्किलें बढ़ीं
फीस में लगातार हो रही बढ़ोतरी के साथ-साथ स्टेशनरी और यूनिफॉर्म के दाम भी अनियंत्रित रूप से बढ़ रहे हैं। अभिभावकों के पास स्कूल द्वारा निर्धारित दुकानों से महंगे दामों पर सामान खरीदने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता। यदि कोई अभिभावक बाहर से किताबें खरीदने की कोशिश करता है, तो स्कूल प्रबंधन इसे मान्यता नहीं देता।
दुकानदार भी मनमानी कर रहे हैं। वे केवल पूरी किताबों का सेट ही बेचते हैं, जबकि किसी एक किताब को अलग से खरीदने की अनुमति नहीं देते। इसका सीधा असर अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा है। बिलासपुर सहित कई शहरों में निजी स्कूलों और दुकानदारों की मिलीभगत से शिक्षा का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है, और प्रशासन इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा।
अभिभावकों में असंतोष, लेकिन विरोध करने से डर
अभिभावकों में बढ़ती फीस और महंगी किताबों को लेकर गहरा असंतोष है, लेकिन वे खुलकर विरोध करने से डरते हैं। उन्हें आशंका है कि यदि वे इस मुद्दे पर आवाज उठाते हैं, तो उनके बच्चों के साथ भेदभाव किया जा सकता है या उन्हें स्कूल से निकालने का दबाव बनाया जा सकता है। इसी डर के कारण अधिकांश अभिभावक चुपचाप इस आर्थिक बोझ को सहने को मजबूर हैं।
दूसरी ओर, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और शिक्षण की गुणवत्ता को लेकर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं, जिससे मजबूरी में माता-पिता को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाना पड़ता है। लेकिन अब निजी स्कूलों की बढ़ती फीस और अन्य खर्चों ने अभिभावकों के सामने एक नई दुविधा खड़ी कर दी है। वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि अपने बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए वे इस बढ़ती महंगाई का सामना कैसे करें।
प्रकाशकों और स्कूलों की मिलीभगत से महंगी किताबें
अभिभावकों का आरोप है कि निजी स्कूल और प्रकाशक मिलकर किताबों की कीमतों को बढ़ा रहे हैं। सरकंडा के रहने वाले अभिभावक बसंत जायसवाल का कहना है कि स्कूल प्रबंधन और प्रकाशकों की साठगांठ के कारण किताबों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे अभिभावकों को हर साल अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है।
स्कूलों द्वारा विशेष प्रकाशकों की किताबों को अनिवार्य कर दिया जाता है, जबकि अन्य बोर्ड की समान गुणवत्ता वाली किताबें बाजार में कम कीमत पर उपलब्ध होती हैं। लेकिन स्कूलों की मनमानी के चलते अभिभावकों को महंगी किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है।
प्रशासन की चुप्पी से बढ़ रही मनमानी
बढ़ती फीस और महंगी किताबों के मुद्दे पर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी ने भी अभिभावकों की परेशानी को और बढ़ा दिया है। कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी और अन्य प्रशासनिक अधिकारी इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे। इसका फायदा उठाकर स्कूल प्रबंधन और दुकानदार मनमानी कर रहे हैं और हर साल अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ डाल रहे हैं।
शिक्षा अब एक सामाजिक सेवा की जगह व्यापार का रूप ले चुकी है, जहां स्कूलों का मुख्य उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना बन गया है। यदि प्रशासन ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो आने वाले वर्षों में मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बच्चों को अच्छी शिक्षा देना और भी कठिन हो जाएगा।
क्या शिक्षा भी अब व्यापार बन गई है?
हर साल स्कूल फीस, किताबों और यूनिफॉर्म की बढ़ती कीमतों से यह सवाल उठने लगा है कि क्या अब शिक्षा भी एक व्यापार बन गई है? प्रशासन की लापरवाही और सरकारी नियंत्रण की कमी के कारण निजी स्कूलों की मनमानी लगातार बढ़ती जा रही है।
अभिभावक उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे और एक मजबूत नीति बनाकर निजी स्कूलों की फीस और किताबों की कीमतों को नियंत्रित करे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले वर्षों में शिक्षा केवल अमीरों के लिए ही सुलभ रह जाएगी, और मध्यमवर्गीय व निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए एक सपना बनकर रह जाएगी।