Anti-Naxal Operation: माओवादियों ने जारी किया पत्र, मुठभेड़ की सारी जानकारी दी, बताया- इस वजह से मारे गए इनामी नेता बसवराजू
Anti-Naxal Operation: अबूझमाड़ के जंगलों में हाल ही में हुई मुठभेड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू
27, May, 2025 | रायपुर, छत्तीसगढ़ | Anti-Naxal Operation: अबूझमाड़ के जंगलों में हाल ही में हुई मुठभेड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू की मौत के बाद, माओवादियों ने एक पत्र जारी कर पूरी घटना की अपनी कहानी बताई है। इस पत्र में माओवादियों ने दावा किया है कि उन्हें इस मुठभेड़ की आशंका पहले से ही थी। उन्होंने बताया कि सुरक्षा बल के जवानों के बढ़ते दबाव के कारण बसवराजू की सुरक्षा घटाना उनकी मजबूरी बन गई थी।
बसवराजू की मौत का कारण और मुठभेड़ की कहानी
माओवादियों के पत्र के अनुसार, बसवराजू सेफ जोन में जाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे, और इसी वजह से वे सुरक्षा बल के हत्थे चढ़ गए। उन्होंने दावा किया कि इस मुठभेड़ में 27 नहीं, बल्कि कुल 28 नक्सली मारे गए थे, और मारे गए सभी नक्सलियों के नाम भी जारी किए गए हैं। माओवादियों ने यह भी बताया कि उनकी रणनीति अब युवा विंग को मजबूत करने पर केंद्रित है।

माओवादियों ने बताया बसवराजू की मौत का कारण:
“हमारी पार्टी के महासचिव कामरेड बीआर दादा की माड़ क्षेत्र में मौजूदगी के बारे में पुलिस और खुफिया विभाग वालों को पहले से जानकारी थी। दरअसल, पिछले छह महीनों में माड़ क्षेत्र से अलग-अलग यूनिटों के कुछ लोग कमजोर होकर पुलिस अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर गद्दार बन गए। इन लोगों से हमारे गोपनीय गतिविधियों की जानकारी उनको मिलती रही। इसी कड़ी में कामरेड बीआर दादा को निशाने पर लेकर जनवरी और मार्च महीनों में दो बड़े अभियानों का संचालन किया गया, लेकिन इसमें वे सफल नहीं हुए। इन अभियानों के बाद पिछले डेढ़ महीने में उन यूनिटों के छह लोगों ने दुश्मन के सामने सरेंडर कर दिया, जिसमें दादा की सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी निभाने वाले सीवयपीसी मेंबर भी शामिल था। इसके अलावा, माड आंदोलन को गाइड करने वाले यूनिफाइड कमांड के एक सदस्य भी इस बीच गद्दार बन गए। इससे उन लोगों का काम और आसान हो गया। ये सभी गद्दार लोग रेकी सहित ऑपरेशन में भी शामिल हुए। इन लोगों के कारण हमें इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।”
माओवादियों ने आगे लिखा है कि जनता को अपने जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर यहां के संपदाओं को कॉर्पोरेटों को सौंपने के मकसद से चलाए जा रहे इस अभियान में गद्दारों की वजह से सुरक्षा बलों को ये सफलता मिली।

पूरे ऑपरेशन की माओवादी कहानी:
इस पत्र में यह भी बताया गया है कि सुरक्षाबलों ने कैसे नक्सलियों को चारों तरफ से घेर लिया। माओवादी लिखते हैं: “योजना के तहत 17 मई से नारायणपुर और कोंडागांव डीआरजी वालों का डिप्लायमेंट ओरछा की ओर से शुरू हुआ। 18 मई को दंतेवाड़ा, बीजापुर के डीआरजी, बस्तर फाइटर्स के जवानों ने अंदर आए। 19 तारीख की सुबह 9 बजे तक ये लोग हमारी यूनिट के नजदीक पहुंच गए। अभियान से एक दिन पहले यानी 17 तारीख को उस यूनिटों का एक पीपीसी मेंबर अपने पत्नी के साथ भाग गया। इन लोगों के भाग जाने के बाद वहां से डेरा बदल दिया गया। 19 तारीख की सुबह पुलिस फोर्स के नजदीक गांव तक पहुंचने की खबर मिलने के बाद हम लोग वहां से निकलकर जा रहे थे। तभी रास्ते में सुबह 10 बजे पुलिस जवानों से पहली मुठभेड़ हुई। इसके बाद दिनभर में 5 बार मुठभेड़ हुई। इन मुठभेड़ों में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। उनके घेराव क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए 20 तारीख को दिनभर कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस दौरान 20 तारीख की रात को हजारों पुलिस बल ने नजदीक से घेर लिया। इसके बाद 21 मई की सुबह फाइनल ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। एक तरफ अत्याधुनिक हथियारों से लैस हजारों पुलिस वाले थे। ऑपरेशन के दौरान इन लोगों को खाने पीने की व्यवस्था हेलिकॉप्टरों से की जा रही थी। दूसरी तरफ हमारे मात्र 35 जन क्रांतिकारी थे। 60 घंटे से इन लोगों को खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला था। ये सभी भूखे थे। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच में युद्ध शुरू हुआ। इस दौरान हमारे कामरेडों ने बीआर दादा को अपने बीच में सुरक्षित जगह रख कर प्रतिरोध किया।”
“पहले राउंड में डीआरजी के कोटलू राम को मार गिराया। इसके बाद कुछ समय तक आगे आने के लिए कोई हिम्मत नहीं कर पाया। बाद में फिर फायरिंग चालू हुई। इस दौरान प्रतिरोध का नेतृत्व करते हुए सबसे पहले कमांडर चंदन शहीद हुआ। फिर भी सभी ने आखिरी तक डट कर प्रतिरोध किया और कई जवानों को घायल कर दिया। एक टीम आगे बढ़कर उनके घेराव को तोड़ने में सफल हुई, लेकिन भारी शेलिंग के कारण बाकी लोग उस रास्ते से नहीं निकल सके। इस दौरान घेराव को ब्रेक करने वाली टीम मुख्य टीम से अलग हो गई। इस दौरान सभी ने अपने नेतृत्व को बचाने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए दादा को आखिर तक एक खरोंच भी नहीं आने दी, लेकिन जब सभी शहीद हो गए तो कामरेड बीआर दादा को जिंदा पकड़कर उनकी हत्या कर दी गई।”
माओवादियों को मिला एक शव, शांति भंग का आरोप
माओवादियों ने बताया कि इस मुठभेड़ में उनके कुल 35 कामरेड थे, जिनमें से 28 मारे गए। हालांकि, 7 लोग सुरक्षित निकलने में सफल रहे। माओवादियों ने बताया कि कामरेड नीलेश का शव उनके पीएलजीए को मिला। उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस फोर्स वापस जाते समय इंद्रावती नदी किनारे आईईडी विस्फोट की चपेट में आ गए, जिससे एक जवान रमेश हेमला ढेर हो गया, जो कुछ साल पहले उसी क्षेत्र में एलओएस कमांडर के रूप में काम करता था।
अपने पत्र में माओवादियों ने केंद्र और राज्य सरकार पर ‘शांति भंग’ करने का आरोप लगाया है। उन्होंने लिखा है कि इस सब-जोन में उनकी ओर से एकतरफा सीजफायर की घोषणा की गई थी, जो कामरेड बीआर दादा के सुझाव पर शांति वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए किया गया था। इस दौरान उन्होंने सरकारी सशस्त्र बलों पर कार्रवाइयों पर रोक लगा रखी थी। माओवादियों ने दावा किया कि इसी का फायदा उठाते हुए षड्यंत्र के तहत केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर इतने बड़े हमले को अंजाम दिया। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि कोई भी मीडिया वाला इस बारे में सवाल नहीं उठा रहा है।
बसवराजू पहले से थे मौत के लिए तैयार: माओवादियों का दावा
माओवादियों ने आगे लिखा है कि जनवरी महीने तक यह यूनिट 60 से अधिक संख्या में रहती थी, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों में आसान मोबिलिटी के लिए संख्या को घटाया दिया गया था। इसके साथ ही उस कंपनी से इस बीच में कुछ सीनियर लोगों ने हिम्मत हारकर सरेंडर कर दिया। घटना के समय संख्या 35 थी। माओवादियों ने दावा किया कि अप्रैल और मई के महीने में पहले से ही बड़े अभियानों का अंदेशा था। इसके बावजूद कामरेड बसवराजू सुरक्षित जगह जाने के लिए तैयार नहीं थे। सुरक्षा के बारे में पूछने पर उनका जवाब होता था कि “मेरे बारे में आप लोग चिंता नहीं करना। मैं ज्यादा से ज्यादा और दो या तीन साल इस जिम्मेदारी को निभा सकता हूं। युवा नेतृत्व का सुरक्षा पर आप लोग ध्यान देना है। शहादतों से कोई आंदोलन कमजोर नहीं होता है। शहादत बेकार नहीं जाती है। इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ। इतिहास में शहादत ने हमेशा ही क्रांतिकारी आंदोलनों को ताकत देने का काम किया है। अब भी मुझे विश्वास है कि इन शहादतों की प्रेरणा से क्रांतिकारी आंदोलन कई गुणा ताकत के साथ नए सिरे से उभर कर सामने आएगा। इस फासीवादी सरकार की दुष्ट योजना साकार नहीं होगी। अंतिम जीत जनता की होगी।” माओवादियों ने आगे बताया कि उनके कई कामरेड्स के समझाने के बाद भी बसवराजू नहीं माने और प्रतिकूल स्थिति में कैडर के साथ रहते हुए नजदीकी मार्गदर्शन देते रहे।
मारे गए 28 माओवादियों के नाम:
नक्सलियों ने बताया है कि माड़ क्षेत्र के गुंडेकोट जंगल में 21 मई 2025 को हुए मुठभेड़ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव कामरेड नंबाला केशवराव उर्फ बसवराजू उर्फ बीआर दादा, सीसी स्टाफ के राज्य कमेटी स्तर के कामरेड नागेश्वर राव उर्फ मधु उर्फ जंग नवीन, सीसी स्टाफ के कामरेड्स संगीता, भूमिका, विवेक, सीवयपीसी सचिव कामरेड चंदन उर्फ महेश, सीवयपीसी सदस्या सजंति के साथ गुड्डु रामे, लाल्सू, सूर्या, मासे, कमला, नागेश, रागो, राजेश, रवि, सुनील, सरिता, रेश्मा, राजू, जमुना, गीता, हुंगी, सनकी, बदरू, नीलेश, संजु समेत कुल 28 लोगों की मौत हो गई।



