छत्तीसगढ़

कोयला लेवी और DMF घोटाले में बड़ी राहत: रानू, सौम्या और सूर्यकांत को SC से मिली सशर्त जमानत, छत्तीसगढ़ में रहने पर रोक

कोयला लेवी घोटाले और डीएमएफ (जिला खनिज निधि) घोटाले में आरोपी वरिष्ठ अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने निलंबित...

कोयला लेवी घोटाले और डीएमएफ (जिला खनिज निधि) घोटाले में आरोपी वरिष्ठ अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने निलंबित आईएएस अधिकारी रानू साहू, राज्य सेवा की अधिकारी सौम्या चौरसिया और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी को सशर्त अंतरिम जमानत दी है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत के बावजूद तीनों को छत्तीसगढ़ में रहने की अनुमति नहीं होगी।

यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को जमानत की सुविधा तो दी जा रही है, लेकिन जांच और संभावित प्रभाव से बचाव के लिए छत्तीसगढ़ में रहने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है।

अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे आरोपी

भले ही सुप्रीम कोर्ट से तीनों को जमानत मिल गई हो, लेकिन वे फिलहाल जेल से रिहा नहीं हो सकेंगे। इसकी वजह यह है कि ईओडब्ल्यू और एसीबी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज अन्य मामलों में अब भी कार्रवाई चल रही है। खास तौर पर हाल ही में दाखिल डीएमएफ घोटाले की चार्जशीट में इन तीनों की संलिप्तता को लेकर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

क्या है डीएमएफ घोटाला?

डीएमएफ, यानी जिला खनिज निधि, खनन प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए बनाई जाती है। लेकिन जांच में सामने आया कि इस फंड का जमकर दुरुपयोग किया गया। ठेके दिलाने और काम मंजूरी के बदले में अधिकारियों, नेताओं और ठेकेदारों के बीच बड़े पैमाने पर कमीशनखोरी होती रही।

  • टेंडर राशि का लगभग 40% तक कमीशन दिया जाता था।
  • ठेके पाने से पहले ही कैश में मोटी रकम अधिकारियों को दी जाती थी।
  • दो अलग-अलग क्लॉज बनाकर प्राइवेट कंपनियों को टेंडर देने के बदले 15–20% कमीशन फिक्स किया गया था।
  • बिना कमीशन किसी भी योजना को मंजूरी नहीं मिलती थी।

ईडी की रिपोर्ट में गंभीर आरोप

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की रिपोर्ट में रानू साहू को पद का दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया है। जांच के अनुसार, रानू साहू जब कोरबा की कलेक्टर थीं, तब डीएमएफ फंड से करोड़ों की हेराफेरी की गई। ईडी ने उनकी और अन्य आरोपियों की 23.79 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की है, जिसमें से 21.47 करोड़ की अचल संपत्तियां डीएमएफ फंड से जुड़ी ब्लैक मनी से खरीदी गई थीं।

हेराफेरी का पूरा नेटवर्क

जांच में सामने आया है कि यह घोटाला किसी एक व्यक्ति का काम नहीं, बल्कि एक संगठित गिरोह की तरह चल रहा था। अफसर, ठेकेदार और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोग मिलकर योजनाबद्ध ढंग से इस फंड का गबन कर रहे थे।

NGO के नाम पर ठेके लिए गए और फिर अफसरों को मोटा कमीशन देकर काम मंजूर करवाया गया।

मनोज कुमार द्विवेदी, एक NGO से जुड़े कारोबारी, ने 2021 से 2023 के बीच कई ठेके लिए और अधिकारियों को 42% तक कमीशन दिए।

तलाशी में 76.50 लाख रुपये नकद, 8 बैंक खाते, फर्जी दस्तावेज, स्टांप पेपर, और डिजिटल सबूत बरामद हुए।

कौन-कौन हैं जेल में?

इस घोटाले में रानू साहू, माया वारियर, मनोज कुमार द्विवेदी (NGO सचिव) और अन्य 4 लोग अब भी जेल में बंद हैं। इनके खिलाफ लगातार नए मामले दर्ज हो रहे हैं और जांच एजेंसियां छानबीन में जुटी हैं।

घोटाले की शुरुआत

यह घोटाला 2021-22 में कोरबा जिले से शुरू हुआ, जब रानू साहू कलेक्टर थीं। उनके संपर्क में आए कारोबारी मनोज द्विवेदी ने अधिकारियों और नेताओं से सांठगांठ कर डीएमएफ के फंड का गलत इस्तेमाल शुरू किया। इसके बाद तीन सालों में करोड़ों के टेंडर मनचाही शर्तों पर बांटे गए और उसमें से बड़ा हिस्सा निजी जेबों में चला गया।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जहां तीन प्रमुख आरोपियों को अस्थायी राहत देता है, वहीं यह भी स्पष्ट करता है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाएगी। जमानत मिलने के बावजूद जांच और कार्रवाई में कोई ढील नहीं दी जाएगी। आने वाले दिनों में डीएमएफ और कोयला लेवी घोटाले में और भी खुलासे हो सकते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button