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BIG MOVE BY THE SC | विचाराधीन कैदियों को मतदान अधिकार देने पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब तलब

 

नई दिल्ली, 11 अक्टूबर। देशभर की जेलों में बंद लगभग 4.5 लाख विचाराधीन कैदियों को मतदान का अधिकार देने की मांग पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है।

प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मुद्दे पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया। यह याचिका पंजाब के पटियाला निवासी सुनीता शर्मा ने दाखिल की है।

याचिका में कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत कैदियों के मतदान पर लगाया गया पूर्ण प्रतिबंध संविधान के मूल अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक मानकों का उल्लंघन है।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट से दलील दी कि जिन कैदियों को चुनावी अपराध या भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी नहीं ठहराया गया है, उन्हें मतदान से वंचित करना ‘बेगुनाही के सिद्धांत’ के खिलाफ है।

याचिका में जेलों में स्थानीय मतदान केंद्र स्थापित करने और दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों के कैदियों के लिए डाक मतपत्र की व्यवस्था की मांग की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, देश की जेलों में बंद 75 प्रतिशत से अधिक कैदी विचाराधीन हैं, जिनकी सुनवाई कई वर्षों तक लंबित रहती है। याचिका में तर्क दिया गया है कि ऐसे लोगों को मतदान अधिकार से वंचित करना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर करने जैसा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग से इस मुद्दे पर जवाब तलब किया है।

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