CG BIG DICISION | बिल्हा तहसील क्लर्क को 21 साल बाद मिला इंसाफ ….

बिलासपुर, 11 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिल्हा तहसील कार्यालय के तत्कालीन रीडर-क्लर्क बाबूराम पटेल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा कि आरोपी ने रिश्वत मांगी या अवैध लाभ के रूप में धन स्वीकार किया था।
यह मामला 20 फरवरी 2002 का है, जब शिकायतकर्ता मथुरा प्रसाद यादव ने लोकायुक्त पुलिस में शिकायत दी थी कि पटेल ने उसके पिता की जमीन का खाता अलग करने के बदले ₹5000 की रिश्वत मांगी थी, जो बाद में ₹2000 में तय हुई। ट्रैप कार्रवाई के दौरान पटेल को ₹1500 लेते हुए पकड़ा गया था, जिसके बाद 30 अक्टूबर 2004 को प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (विशेष न्यायाधीश) ने उसे एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
पटेल ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनके अधिवक्ता विवेक शर्मा ने तर्क दिया कि यह मामला निजी द्वेष के चलते गढ़ा गया था, क्योंकि शिकायतकर्ता की पत्नी पूर्व सरपंच थीं और उनके खिलाफ चल रही जांच में आरोपी की भूमिका थी। साथ ही जब्त राशि रिश्वत नहीं, बल्कि पट्टा शुल्क के रूप में वसूला गया बकाया बताया गया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सिर्फ नोटों की बरामदगी से रिश्वत साबित नहीं होती, जब तक रिश्वत की मांग और स्वीकारोक्तिका स्पष्ट प्रमाण न हो। अदालत ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले — बी. जयाराज बनाम राज्य आंध्र प्रदेश (2014) और सौंदर्या राजन बनाम राज्य (2023) का हवाला दिया।
न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की एकलपीठ ने पाया कि शिकायतकर्ता स्वयं यह नहीं कह सका कि दी गई राशि वास्तव में रिश्वत थी या शुल्क। साथ ही, रिकॉर्डेड बातचीत में आरोपी की आवाज की पहचान भी स्पष्ट नहीं थी।
अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का गलत मूल्यांकन किया था। इसलिए हाईकोर्ट ने 30 अक्टूबर 2004 की दोषसिद्धि को रद्द करते हुए बाबूराम पटेल को सभी आरोपों से बरी कर दिया।



