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MLA CAST CERTIFICATE VIVAD | टी.एस. सिंहदेव बोले – नकली जाति प्रमाण पत्र वालों पर तुरंत कार्रवाई हो

 

सूरजपुर/अंबिकापुर, 8 नवंबर 2025। प्रतापपुर विधानसभा की विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते के जाति प्रमाण पत्र की वैधता पर विवाद गहराता जा रहा है। आरोप है कि उन्होंने कथित रूप से फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस मामले में अब आदिवासी समाज खुलकर विरोध में उतर आया है और विधायक की सदस्यता रद्द करने की मांग कर रहा है।

पूर्व उप मुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने भी इस पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा “अगर कोई भी व्यक्ति फर्जी जाति के आधार पर चुनाव लड़ता है, फिर चाहे वह किसी भी पार्टी का क्यों न हो, उसका निर्वाचन तुरंत रद्द होना चाहिए।”

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

जानकारी के अनुसार, आदिवासी समाज ने इस मामले को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। अदालत ने 17 जून 2025 को जिला स्तरीय और उच्च स्तरीय जाति छानबीन समितियों को जांच कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। लेकिन चार महीने बीत जाने के बाद भी जाति प्रमाण पत्र निरस्त नहीं किया गया है। इसके चलते आदिवासी समाज में नाराज़गी बढ़ती जा रही है और उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो वे आंदोलन करेंगे।

तीन नोटिस के बाद भी नहीं पहुंचीं विधायक

जिला स्तरीय जाति प्रमाण पत्र सत्यापन समिति ने विधायक शकुंतला पोर्ते को 28 अगस्त, 15 सितंबर और 29 सितंबर को दस्तावेजों के साथ उपस्थित होने के लिए नोटिस भेजे थे। बताया जा रहा है कि वे किसी भी सुनवाई में शामिल नहीं हुईं। आदिवासी समाज का कहना है कि यह जांच प्रक्रिया से बचने की कोशिश है।

गोड़ समाज और आदिवासी संगठनों के गंभीर आरोप

गोड़ समाज और अन्य आदिवासी संगठनों का आरोप है कि विधायक ने गलत जानकारी और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ST प्रमाण पत्र बनवाया। उनका कहना है कि न विधायक और न उनके पति कोई मूल आदिवासी दस्तावेज प्रस्तुत कर पाए हैं। समाज का दावा है कि उनके पिता के नाम पर भी कोई वैध प्रमाण पत्र नहीं था, फिर भी विधायक को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया।

“यह आदिवासी अधिकारों का हनन”

आदिवासी समाज ने इसे सीधा “राजनीतिक धोखा” बताया है। उनका कहना है कि यदि कोई गैर-आदिवासी व्यक्ति गलत प्रमाण पत्र के आधार पर ST सीट से चुनाव जीतता है, तो यह असली आदिवासी उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन है। समाज ने इसे आदिवासी अस्मिता पर आघात बताते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

 

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