ARAVALLI BACHAO | अरावली का डेथ वारंट ?

रायपुर डेस्क। अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा ने दिल्ली और राजस्थान में विरोध के सुर तेज कर दिए हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बदलाव से देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली का इकोलॉजिकल संतुलन खतरे में पड़ सकता है।
नई परिभाषा के अनुसार केवल वही भू-आकृति अरावली में शामिल होगी जो स्थानीय धरातल से कम से कम 100 मीटर ऊंची हो और दो या दो से अधिक पहाड़ियाँ 500 मीटर की दूरी पर हों।
गुरुग्राम में शनिवार को बड़ी संख्या में पर्यावरण कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग हरियाणा के कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सिंह के घर के बाहर प्रदर्शन कर “अरावली बचाओ, भविष्य बचाओ” और “अरावली नहीं तो जीवन नहीं” जैसे नारे लगाए।
वकीलों ने भी उदयपुर में विरोध प्रदर्शन किया। न्यायालय परिसर से जिला कलेक्ट्रेट तक मार्च किया और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि नई परिभाषा माइनिंग, निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है, जिससे अरावली की प्राकृतिक सुंदरता और पानी की आपूर्ति पर असर पड़ेगा।
राजस्थान के कांग्रेस नेता टीकाराम जूली ने चेतावनी दी कि इससे इकोलॉजिकल नुकसान के साथ रेगिस्तान बनने का खतरा है। उन्होंने कहा, “अरावली राजस्थान की जीवनरेखा है, इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है।”
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी की नई परिभाषा को मंजूरी दी थी। इसके बाद से विरोध लगातार जारी है।



