RSS 100 YEARS HISTORY | संघ की विचारधारा से सत्ता तक की यात्रा

नई दिल्ली, 27 सितंबर। 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज अपने 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। महज 17 लोगों से शुरू हुआ यह संगठन आज करीब 10 लाख स्वयंसेवकों तक फैल चुका है और भारतीय राजनीति, समाज और संस्कृति पर गहरी छाप छोड़ चुका है।
हेडगेवार से लेकर गोलवलकर तक
चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने से असंतुष्ट कुछ नेता, विशेषकर तिलक समर्थक, नई राह तलाश रहे थे। इन्हीं हालात में हेडगेवार ने RSS की नींव रखी। शुरू में यह संगठन कांग्रेस से जुड़े कई कार्यकर्ताओं का मंच रहा, लेकिन धीरे-धीरे यह एक अलग पहचान के साथ हिंदू समाज के संगठन के रूप में उभरा।
1940 में हेडगेवार की मृत्यु के बाद एमएस गोलवलकर (गुरुजी) ने नेतृत्व संभाला और संगठन को 700 से बढ़ाकर 7,000 शाखाओं तक पहुँचाया।
सत्ता से पहला रिश्ता
RSS ने पहली बार सत्ता का स्वाद 1977 के लोकसभा चुनाव में चखा, जब आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी सरकार में जनसंघ का विलय हुआ। संघ पर लगा 21 महीने का प्रतिबंध भी इसी दौर में हटाया गया। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी 1998 की एनडीए सरकार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 से अब तक भाजपा की प्रचंड जीत में भी RSS की गहरी भूमिका रही।
सामाजिक विस्तार
संघ ने दलितों और आदिवासियों तक पहुँच बनाने के लिए समाजिक समरसता मंच और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों की स्थापना की। 1936 में महिलाओं के लिए राष्ट्र सेविका समिति बनी, जो आज लगभग 5,500 शाखाओं के साथ सक्रिय है।
वर्तमान और विवाद
मोहन भागवत के कार्यकाल में RSS ने कई वैचारिक बदलाव दिखाए। उन्होंने कहा कि “बंच ऑफ थॉट्स अब पुरानी हो चुकी है” और जातिगत भेदभाव को अस्वीकार करने का आह्वान किया। वहीं, राम मंदिर, अनुच्छेद 370 हटाना और तीन तलाक खत्म करना जैसे मुद्दे भाजपा सरकार द्वारा लागू हुए, जिन्हें संघ का एजेंडा माना जाता है।
हालांकि आलोचकों का आरोप है कि RSS अब भी मनुस्मृति में आस्था रखता है और संविधान को कमजोर करने की कोशिश करता है। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता अतुल लोंढे ने कहा कि संघ का असली फोकस समाज को हिंदू-मुस्लिम आधार पर बाँटना है, न कि वैज्ञानिक या प्रगतिशील विकास की ओर।
100 साल का सफर
संघ समर्थक इसे अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और सामाजिक संगठन का प्रतीक मानते हैं, जबकि विरोधियों की नजर में इसने भारत की धर्मनिरपेक्षता और विविधता को चोट पहुँचाई है। विवादों और उपलब्धियों के बीच RSS का 100 साल का सफर भारतीय राजनीति के केंद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है।



