PRESIDENT GOVERNOR BILL TIMELINE | केंद्र बोला – संविधान सर्वोच्च है, अदालत नहीं …

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई है, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधानसभा से पास हुए बिलों पर फैसला करने की समयसीमा तय करने का आदेश दिया गया था। सरकार का कहना है कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ होगा और इससे संवैधानिक अव्यवस्था पैदा हो सकती है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को लिखित जवाब में कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल पर समय सीमा थोपना न्यायपालिका द्वारा अपने अधिकार से आगे बढ़ने जैसा है। इससे तीनों शाखाओं—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन बिगड़ सकता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेष अधिकारों से संविधान में बदलाव करने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल लोकतांत्रिक शासन की ऊंची अवधारणाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी गलती को राजनीतिक और संवैधानिक तरीकों से ही सुधारना चाहिए, अदालत के दखल से नहीं।
संविधान के आर्टिकल 200 के अनुसार, राज्यपाल के पास बिल पर चार विकल्प होते हैं :
बिल को मंजूरी देना
मंजूरी रोकना
बिल को दोबारा विचार के लिए विधानसभा को लौटाना (यदि विधानसभा दोबारा पास कर देती है तो मंजूरी देना जरूरी)
बिल को राष्ट्रपति के पास भेजना, यदि मामला राष्ट्रीय महत्व या संविधान से जुड़ा हो
अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को तीन महीने और राज्यपाल को एक महीने के भीतर बिल पर फैसला करने का आदेश दिया था। इस आदेश पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मु ने आर्टिकल 143 के तहत 14 सवाल सुप्रीम कोर्ट को भेजे थे, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों पर स्पष्टिकरण मांगा गया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस बीआर गवई कर रहे हैं, ने सुनवाई का समय तय कर दिया है और केंद्र व राज्यों को 12 अगस्त तक लिखित जवाब दाखिल करने को कहा गया है।



