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छत्तीसगढ़ की सरकार मजदूरों को तबाह करने में अव्वल- सहाय

रायपुर। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार ने खेतिहर मजदूरों को तबाह करने के लिए देश के सभी राज्यों में पहला स्थान हासिल किया है। सरकार की अपनी रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ मनरेगा के भुगतान में 26 वें स्थान पर रहा है।
राजीव भवन में आज मीडिया से बातचीत करते हुए सहाय ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार  मजदूरों को पिछले 14-15 सालों से 150 दिन रोज़गार देने का वादा और दावा करती रही थी लेकिन, हक़ीक़त यह रही कि राज्य सरकार केवल 47दिन का रोजगार मनरेगा मजदूरों को दे पाई। इसका भुगतान भी सरकार समय पर नहीं कर पाई। नतीजतन छत्तीसगढ़ के  41 लाख 20 हजार 54 पंजीकृत मज़दूर अपनी मजदूरी के लिए आज दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। विधान सभा के बजट सत्र में कांग्रेस ने मनरेगा मजदूरों का भुगतान नहीं होने का मुद्दा लगातार उठाया। इस पर विभागीय मंत्री अजय चंद्राकर ने बक़ाया राशि नहीं होने की बात सदन को बताई। सरकार के इस झूठे बयान पर सत्ताधारी भाजपा के भी कुछ विधायकों ने आपत्ति दर्ज की थी। केंद्र सरकार की रिपोर्ट ने इस हक़ीक़त को सच साबित किया। रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ के मनरेगा के बजट में मात्र 2.7% की बढ़ोतरी की, जबकि कांग्रेस की UPA सरकार ने इस बजट में 9% का इज़ाफ़ा किया था।
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने यह झूठ अपने उस वादे और दावे को छुपाने के लिए बोला था। जिसमें सरकार ने 150 दिन रोज़गार देने की घोषणा की थी, जबकि हक़ीक़त में मनरेगा मजदूरों को सिर्फ़ 47 दिन का रोज़गार मिल पाया। यह मनरेगा मजदूरों के साथ किसी भी राज्य में किए गए सबसे बड़े धोखे का कीर्तिमान
सहाय ने कहा कि मनरेगा के तहत कांग्रेस की यूपीए सरकार ने छत्तीसगढ़ को 2010-12 के बीच 2075.65 करोड़ जारी किए थे। अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ को मिली इतनी भारी-भरकम राशि के उपयोग का ज़मीन पर कोई काम नहीं दिखता है और न ही छत्तीसगढ़ सरकार अब तक इसके ख़र्च का कोई ब्योरा पेश कर पाई है। तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने लगभग हर महीने राज्य का दौरा कर मनरेगा की स्थिति का रिपोर्ट कार्ड छत्तीसगढ़ सरकार से माँगा। लेकिन प्रदेश सरकार ने इसका कोई ब्योरा न तो केंद्र की सरकार को दिया न राज्य की विधान सभा को। सरकार ने मनरेगा की राशि से जो सड़क–पुलिया–नाली–छोटे बाँध निर्माण के दावे किए थे, वे सब काग़ज़ी शेर ही साबित हुए। केन्द्र सरकार की नोटबंदी ने छत्तीसगढ़ के  20 हजार से अधिक मनरेगा मजदूरों की रोज़ी-रोटी छीन ली। नोटबंदी के कारण देश भर में मची अफ़रा-तफ़री के बीच छत्तीसगढ़ के भी मनरेगा मजदूरों का भुगतान आज तक अटका पड़ा है।

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