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भूपेश बघेल : लंबी रेस’ तो 2013 में ही शुरु हो गई थी

अनिरुद्ध दुबे
रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नये अध्याय लिखे जाने की शुरुआत हो चुकी।


बघेल लंबी रेस का घोड़ा होंगे इसके लक्षण 2013 में ही नजर आने लगे थे। यह वह समय था जब झीरम घाटी नक्सली हमले में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा एवं दिग्गज राजनीतिज्ञ विद्याचरण शुक्ल समेत और कई नेताओं की शहादत हुई, कांग्रेस में एक तरह से सन्नाटा पसर गया था।
हालांकि नंद कुमार पटेल की शहादत के बाद डॉ. चरणदास महंत ने प्रदेश कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष का उत्तरदायित्व सम्हाला, लेकिन पार्टी को और बड़े चेहरे तैयार करने की जरूरत थी।
इसकी शुरुआत उस समय हुई जब जून 2013 में महंत को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपने के साथ ही भूपेश बघेल को को-आर्डिनेटर (कार्यक्रम समन्वयक) बनाया गया था। यहीं से बघेल का महत्व बढ़ना शुरु हुआ। इस पर 16 जून 2013 को जनता से रिश्ता में पत्रकार अनिरुद्ध दुबे की ‘भूपेश बघेल होंगे रेस का नया घोड़ा’ शीर्षक से विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी।
दिसंबर 2013 के चुनाव में कांग्रेस के सरकार बनाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी बघेल को मिली। बघेल के अध्यक्षीय कार्यकाल में कांग्रेस की न सिर्फ बिगड़ी सेहत में काफी सुधार हुआ, बल्कि उन्होंने नसबंदी कांड, आंखफोड़वा कांड, नॉन घोटाला एवं किसानों से वादाखिलाफी जैसे मुद्दों को पूरी शिद्दत के साथ उठाते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार की नाक में दम कर दिया था।
बघेल के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही एक और नये राजनीतिक सफर की शुरुआत होगी। नये रायपुर की सड़कों से उनका रिश्ता गहरा जाएगा जो कि चौड़ी और साफ-सुथरी हैं, वहीं अपने साथी स्व. महेंद्र कर्मा की याद उन्हें कभी-कभी बस्तर की तरफ भी खींच ले जाएगी जहां के कई रास्ते अभी भी उबड़-खाबड़ और दुर्गम हैं।

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