अनिरुद्ध दुबे
बिलासपुर। बिलासपुर शहर से लगातार चार बार विधायक चुनाव जीते अमर अग्रवाल के लिए यह पांचवां चुनाव कुछ ज्यादा मशक्कत वाला हो सकता है। कांग्रेस ने पूरे भरोसे के साथ शैलेष पांडे को मैदान में उतारा है। चुनाव को चंद दिन बचे हैं और बिलासपुर में कांग्रेसी गुटबाजी सतह पर है। चुनावी शोर शराबे के बीच यहां एंटी इकमबेंसी शब्द खूब चर्चा में है जिसमें कांग्रेस अपना फायदा देख रही है। वाकई यदि अंडर करेंट चल रहा होगा तो बचे पांच दिनों में जनता जनार्दन को साधना अमर अग्रवाल के लिए बड़ी चुनौती होगी।
छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के बाद जो तीन विधानसभा चुनाव हुए, बिलासपुर से भाजपा प्रत्याशी अमर अग्रवाल तीनों चुनाव जीते। यूं कहें, चुनाव दर चुनाव उनकी लीड भी बढ़ते चली गई। 2003 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के अनिल टाह को 5 हजार 843 मतों से हराया था। वहीं 2008 के चुनाव में अनिल टाह उनसे 9 हजार 376 मतों से हारे। 2013 के चुनाव में अमर अग्रवाल ने कांग्रेस की श्रीमती वाणी राव के खिलाफ 15 हजार 599 मतों से जीत दर्ज की। इससे समझा जाता है कि तीन चुनाव में अग्रवाल की धीरे धीरे जमीन मजबूत होती चली गई। लेकिन तीसरे कार्यकाल में उनके स्वास्थ्य मंत्री के पद पर रहते हुए मोतियाबंद आपरेशन शिविर में आपरेशन की विफलता के कारण मरीजों की आंखों की रोशनी चले जाना एवं नसबंदी शिविर में गलत आपरेशन की वजह से महिलाओं की मौत ये दो घटनाएं ऐसी रहीं जिससे पूरी भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा होना पड़ा था। इसके अलावा सिवरेज लाइन के निर्माण कारण बिलासपुर शहर लंबे समय तक डिस्टर्ब रहा। वो कड़वी यादें यहां के मतदाताओं के जेहन से अब तक नहीं मिटी हैं। जनमानस के बीच चर्चा यही है कि दस साल हो गए सिवरेज लाइन का काम पूरा नहीं हुआ और करोड़ों की इस योजना का फायदा 25-30 हजार लोगों को ही मिलना है, जबकि पिछले पंद्रह सालों में बिलासपुर की जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई। विधानसभा के भीतर अमर अग्रवाल ने कहा था- बिलासपुर शहर की लाइफ लाइन अरपा नदी को लंदन की टेम्स नदी की तरह खूबसूरती प्रदान करेंगे। वास्तविकता यह है कि अरपा प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया। रायपुर, रायगढ़ एवं अम्बिकापुर तरफ जाने वाली सड़कों की हालत खस्ता है। इन सब के अलावा ऐसे और भी कुछ बड़े काम हैं जो होते-होते नहीं हुए। राजनीति को गहराई से समझने वाले यही कह रहे हैं- बिलासपुर में इस समय एंटी इंकमबेंसी वाली स्थिति है। यानी अमर अग्रवाल के सामने यह चुनाव बड़ी चुनौती बनकर आया है।
जहां तक कांग्रेस प्रत्याशी शैलेष पांडे की बात है वे प्राइवेट यूनिवर्सिटी का रजिस्ट्रार जैसा बड़ा पद छोड़कर राजीनीति में आए हैं। उनमें कांग्रेस नई संभावनाएं देख रही है। पूर्व में यह चर्चा थी कि वे कोटा से कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे। काफी विचार मंथन के बाद कांग्रेस ने अमर अग्रवाल के खिलाफ पांडे को सामने लाना उचित समझा। पांडे मृदुभाषी हैं। बीच में पुराने कांग्रेसी नेता अशोक अग्रवाल जब पूरी आक्रामकता के साथ कांग्रेस दफ्तर में बरस रहे थे तब भी पांडे संयम का परिचय देते हुए शांत बने रहे। बिलासपुर शहर के पढ़े लिखे वर्ग के बीच पांडे के नाम की इसलिए चर्चा में है कि वे शिक्षा विद रहे हैं। इसके अलावा बिलासपुर में काफी ब्राम्हण वोटर हैं, जिसका फायदा पांडे को मिलेगा। छत्तीसढ़ जनता कांग्रेस से बृजेश साहू चुनावी मैदान में हैं। जनता कांग्रेस ने बृजेश साहू को इसलिए उतारा है कि बिलासपुर क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग मतदाताओं की बहुतायत है। कांग्रेस मानकर चल रही कि जनता कांग्रेस के चुनावी मैदान में होने से उसे कोई बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होना है। जनता कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा के बहुत से ओबीसी वोटों को जरूर अपनी तरफ खींच सकता है। यदि वास्तव में बिलासपुर क्षेत्र में एंटी इंकमबेंसी जैसा अदृश्य तौर पर कुछ घट रहा होगा तो उसका फायदा शैलेष पांडे को मिल सकता है।
अमर अग्रवाल | शैलेष पांडे |
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खास बातें | खास बातें |
1. तीन बार की विधायकी एवं मंत्री पद का अनुभव | 1 नामचीन शिक्षा विद |
2. बिलासपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल हुआ | 2. व्यवहार कुशल |
3. पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लखीराम अग्रवाल के पुत्र, राजनीति विरासत में मिली | 3. चुनाव लड़ने संसाधनों की कमी नहीं |
कमियां | कमियां |
1. नसबंदी व आंखफोड़वा कांड जैसी घटनाएं खाते में दर्ज | 1. कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी के शिकार |
2. सिवरेज लाइन के निर्माण से बिलासपुर शहर के लोगों का त्रस्त रहना | 2. बिलासपुर से प्रत्याशी होने के फैसले में हुआ विलंब |
3. अरपा प्रोजेक्ट किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाया | 3. विश्वविद्यालय के कार्यकाल में घोटाले का आरोप |