सामुदायिक वनअधिकार पट्टे नही मिलने से आदिवासी चिंतित
रायपुर। छत्तीसगढ़ में वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत सामुदायिक वनाधिकार के प्रदेश के 4.5 लाख परिवारों के दावे अब तक मान्य नहीं किए गए हैं और ना ही उनके दावों को अमान्य किए जाने की वजह बताई जा रही है इसके चलते आदिवासियों के मन में चिंता और भय की स्थिति बनी हुई। यह बात आज छत्तीसगढ़ वनअधिकार मंच के बैनर तले आए हुए आदिवासियों ने प्रेसक्लब में मीडिया के सामने कहीं। उन्होंने प्रेस के माध्यम से प्रदेश सरकार से अनुरोध करते हैं वह कहां केवल निर्भर समुदाय के मन से बेदखली का भय दूर करने के लिए ठोस कदम उठाये। इस हेतु आश्वस्थ करें कि भारतीय वन कानून 1927 में प्रस्तावित जन विरोधी और क्रूर संशोधन के प्रस्ताव पर राज्य सरकार विरोध करेगी और भविष्य में जंगल जमीन से किसी परिवार को विस्थापित नहीं होने देगी। उन्होंने मांग की कि ऐसी ग्राम सभाओं को इतना सक्षम बनाया जा सके कि अपने बीच से वन अधिकार समिति गठित कर दावे आमंत्रित करने दावे पर विचार करना और दावों को सत्यापित करने की प्रक्रिया स्वयं कर सकें। अब तक गलत तरीके से खारिज किए गए दावों और जायज कारण दर्ज कर लिखित सूचना दिए बिना खारिज किये दावों पर पुन: सुनवाई की जाए। छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच के बैनर तले उन्हेंने मांग की है कि आदिवासियों को वन प्रबंधन का अधिकार भी दिया जाए।