SUPREME COURT | विधानसभा द्वारा दोबारा पारित विधेयक को राज्यपाल राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते – सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली, 20 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यपाल की शक्तियों पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि विधानसभा द्वारा कोई विधेयक दोबारा पारित कर राज्यपाल के पास भेजा जाता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचारार्थ नहीं भेज सकते।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प हैं विधेयक को मंजूरी देना, रोकना, राष्ट्रपति के पास भेजना या पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाना। लेकिन यदि विधानसभा विधेयक को फिर से पारित कर देती है, तो राज्यपाल को अनुमति देनी होगी और राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प समाप्त हो जाएगा।
पीठ ने कहा कि यदि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक स्वीकृति रोक सकते हैं, तो निर्वाचित सरकारें एक “अनिर्वाचित नियुक्त व्यक्ति” की दया पर निर्भर हो जाएंगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान की व्याख्या स्थिर नहीं रह सकती, इसे जीवंत रूप से देखा जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि राज्यपाल केवल “डाकिया” की भूमिका तक सीमित नहीं हो सकते और उनके पास असाधारण परिस्थितियों में मंजूरी रोकने की शक्ति भी होनी चाहिए। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस तर्क से तो राष्ट्रपति भी केंद्र सरकार के विधेयकों पर अनुच्छेद 111 के तहत मंजूरी रोक सकते हैं।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास भेजे गए विधेयकों पर निर्णय के लिए समय-सीमा तय की जा सकती है या नहीं।



