दुर्लभ बहरादेव हाथी ने मचाया उत्पात, मकान तोड़ा और अनाज चट कर गया
बलरामपुर: जिले से लगे राजपुर वन परीक्षेत्र के पहाड़खडूवा गांव में बीती रात अचानक बहरादेव हाथी ने उत्पात मचा दिया. ग्रामीणों के तीन घरों को तोड़ते हुए घर के सामान को भी नुकसान पहुंचाया और अनाज को भी रात में चट कर दिया. हाथी की दहशत में ग्रामीण जान बचाकर गांव से भागते हुए नजर आए. बहरादेव के आने की ख़बर मिलते ही वन अमला गांव में आ गया। दरअसल छत्तीसगढ़ के जंगलों में विचरण करने वाले हाथियों के लिए नाम ही पहचान है। गांव, नदी, त्योहार और व्यवहार से उनका नामकरण किया जाता है। इसी आधार पर ग्रामीण तथा वन विभाग के अधिकारी 1990 से इनके नाम तय कर रहे हैं। वर्तमान में 80 हाथी अलग-अलग दलों में और अकेले भी विचरण कर रहे हैं। प्रदेश के सरगुजा वनक्षेत्र में झारखंड के कुसमी जंगल के हाथियों की आवाजाही 1990 में शुरू हुई थी। बीच के वर्षों में नामकरण की प्रक्रिया बंद हो गई थी, परंतु पिछले चार वर्षों से नामकरण फिर शुरू हो गया है।
अकेले घूमने वाले हाथियों का अलग-अलग है नाम 1990 में जनहानि करने वाले एक हाथी को सिविलदाग गांव में पकड़ा गया था। उसी आधार पर हाथी का नामकरण सिविल बहादुर किया गया। उक्त हाथी आज भी रेस्क्यू सेंटर में है। इसी तरह बहरादेव, महान, प्यारे ये सभी ऐसे हाथी हैं, जो अकेले विचरण करते हैं। क्षेत्र के लोग व्यवहार के आधार पर उनकी पहचान कर लेते हैं। – बहरादेव- विशालकाय कदकाठी, तोड़फोड़ के दौरान प्रतिक्रिया नहीं दिखाने के कारण सुनाई न देने के ग्रामीणों के दावे पर नामकरण, जल्दी जंगल से बाहर नहीं आता। – सिविल बहादुर- कुसमी के सिविलदाग बस्ती में पकड़ा गया। – लाली- अंबिकापुर से लगे लालमाटी के जंगल में कब्जे में आया।
विचरण क्षेत्र सूरजपुर जिले के महान नदी के आसपास मिला। – प्यारे- सेटेलाइट रेडियो कालिंग के दौरान मिला सहयोग, कद-काठी भी बेहतर। – मोहन- सूरजपुर वन परिक्षेत्र के मोहनपुर जंगल में कई महीनों तक डेरा। – खोपादेव- सरगुजा अंचल की आराध्य खोपा देवस्थल के नजदीक जंगल में विचरण, वर्तमान में मध्यप्रदेश के सीधी जिले में मौजूदगी। वर्तमान में 80 हाथी अलग-अलग दलों में और अकेले भी विचरण कर रहे हैं।