छत्तीसगढ़

CG News: सरकार ने बसाया पक्का गांव, लेकिन पहाड़ ही रास आया कमार जनजाति को – सुविधाओं के बावजूद लौटे जंगल

छत्तीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजाति कमार समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने की एक बड़ी कोशिश उस वक्त नाकाम होती दिखी, जब उन्हें सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त गांव बसाकर दिए...

19, April, 2025 | मैनपुर। छत्तीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजाति कमार समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने की एक बड़ी कोशिश उस वक्त नाकाम होती दिखी, जब उन्हें सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त गांव बसाकर दिए जाने के बावजूद वे फिर से अपने पारंपरिक पहाड़ी आवास की ओर लौट गए। सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर नया गांव “ताराझर” बसाया था, जिसमें पक्के मकान से लेकर बिजली, पानी, सीसी रोड और मोबाइल टॉवर जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थीं। मगर यह गांव कमार जनजाति के लोगों को भाया नहीं, और वे वापस जंगल के भीतर पहाड़ी की ओर चले गए।

आधुनिक गांव छोड़ वापस पहाड़ पर

गौरतलब है कि मैनपुर से लगभग 18 किलोमीटर दूर कुल्हाडीघाट पंचायत के 139 कमार परिवारों में से अधिकांश लोग वर्षों से दुर्गम पहाड़ी पर रहते आ रहे हैं। करीब 10 साल पहले इनमें से 16 परिवार पहाड़ी से नीचे आकर बसे थे, लेकिन बाकी अब भी पहाड़ पर रहना पसंद करते हैं, जहां न बिजली है, न पानी, न सड़क। पहाड़ पर जीवन कठिन जरूर है, लेकिन उनके मुताबिक वहां जीविकोपार्जन के लिए जरूरी संसाधन, खासकर बांस, सहजता से उपलब्ध हैं।

रमन सरकार ने की थी पुनर्वास की शुरुआत

इस पुनर्वास योजना की शुरुआत वर्ष 2014-15 में तत्कालीन भाजपा सरकार के समय हुई थी। मैनपुर से 7 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे के पास धारपानी में नया “ताराझर” गांव बसाया गया, जहां 32 पक्के मकान इंदिरा आवास योजना के तहत बनाए गए। साथ ही बाद में तीन प्रधानमंत्री आवास भी जोड़े गए। सरकार ने यहां दो तालाब बनवाए, सौर सुजला योजना के तहत 24 घंटे पानी की व्यवस्था की, बिजली, सड़क, मोबाइल टॉवर जैसे संसाधन भी उपलब्ध कराए। इतना ही नहीं, उनके परंपरागत काम—बांस से बर्तन बनाना—के लिए पास के जंगल से बांस भी उपलब्ध कराए जाने की बात हुई थी। खेती के लिए जमीन देने का वादा भी किया गया था।

सरकार बदली, योजना अधूरी रह गई

लेकिन 2018 में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और ग्रामीणों का कहना है कि पुनर्वास की योजना वहीं थम गई। खेत के नाम पर जो ज़मीन दी गई, वह पथरीली निकली, जहां फसल ही नहीं हो सकती थी। बांस की आपूर्ति भी ठप हो गई। जीविकोपार्जन के ठोस साधन न होने की वजह से यहां रहने वाले 32 परिवार 6-7 वर्षों के भीतर दोबारा पहाड़ी पर लौट गए।

ग्रामीणों की व्यथा – “सुविधाएं थीं, लेकिन आजीविका नहीं”

गांव छोड़कर वापस पहाड़ी पर लौटे ग्रामीण जयसिंह, चरणसिंह कमार, जगनाथ कमार, हरिसिंह कमार और अन्य लोगों ने बताया कि नया गांव सुविधाओं से तो लैस था, लेकिन पेट पालने के साधन नहीं थे। उन्होंने बताया कि पहाड़ पर न सही बिजली हो, न पानी, लेकिन बांस आसानी से मिल जाता है, जिससे वे परंपरागत काम कर जीवन यापन कर सकते हैं। सरकारी वादे ज़मीनी हकीकत में नहीं बदले, इसलिए उन्होंने पहाड़ी को ही दोबारा अपना घर बना लिया।

जन-मन योजना से फिर जगी नई उम्मीद

अब राज्य और केंद्र सरकार की जन-मन योजना के तहत कमार जनजातियों के लिए फिर से योजनाएं बनाई जा रही हैं। उम्मीद की जा रही है कि यदि जीविकोपार्जन के ठोस संसाधन – उपजाऊ जमीन, बांस की उपलब्धता, और प्रशिक्षण जैसे उपाय सुनिश्चित किए जाएं, तो इन परिवारों को फिर से मुख्यधारा में लाया जा सकता है और नया ताराझर गांव एक बार फिर आबाद हो सकता है।

इस पूरी कहानी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सिर्फ सुविधाएं देना ही पर्याप्त है, या फिर लोगों की जीवनशैली और जीविकोपार्जन की व्यवस्था को समझकर योजनाएं बनाना ज़्यादा जरूरी है?

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