छत्तीसगढ़

Naxalites Love Story: बंदूक, जंगल और बगावत के बीच खिली मोहब्बत, प्रेम पत्र ने बदल दी खूंखार नक्सलियों की ज़िंदगी

Naxalites Love Story: प्यार कब, कहां और किससे हो जाए, कोई नहीं जानता। कभी ये शहर की भीड़ में पनपता है, तो कभी वीराने में। लेकिन

20, May, 2025 | Naxalites Love Story: प्यार कब, कहां और किससे हो जाए, कोई नहीं जानता। कभी ये शहर की भीड़ में पनपता है, तो कभी वीराने में। लेकिन इस बार प्यार ने ऐसी ज़मीन पर जन्म लिया, जहां केवल बंदूकें बोलती हैं और कदम-कदम पर मौत का साया मंडराता है — घना जंगल और नक्सलवाद की भयावह दुनिया।

ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाकों में घटी एक सच्ची प्रेम कहानी है, जहां दो खूंखार नक्सलियों की मोहब्बत ने उन्हें समाज की मुख्यधारा में लौटने पर मजबूर कर दिया।

संगठन में शुरू हुआ प्यार

रेसिंग कमेटी उर्फ रतन सिंह, जो माओवादी संगठन की कंपनी नंबर-5 के पीपीसी (प्लाटून पार्टी कमांडर) थे, और पुनाय आचला उर्फ हिरोंदा, जो उसी संगठन की सदस्य थीं — दोनों की पहली मुलाकात संगठन के एक कार्यक्रम के दौरान हुई। पहली ही नजर में रतन सिंह का दिल हिरोंदा पर आ गया, लेकिन जंगली जिंदगी में प्रेम का इज़हार आसान नहीं था।

तब रतन सिंह ने एक प्रेम पत्र लिखा और अपने दिल की बात शब्दों में बयां की। हिरोंदा ने भी इस सच्चे प्रेम को ठुकराया नहीं और प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। संगठन की सख्तियों और बंदूक के साये में दोनों ने शादी रचाई, लेकिन संगठन की ओर से परिवार नियोजन का दबाव लगातार बना रहा।

21 साल की बगावत के बाद लौटे समाज में

करीब 21 साल तक दोनों नक्सली गतिविधियों में सक्रिय रहे, लेकिन अंततः प्यार और अपने बच्चे के भविष्य के लिए उन्होंने बंदूक छोड़ दी। दो साल पहले दोनों ने पुलिस के सामने समर्पण कर दिया। आज वे समाज में एक सामान्य जीवन जी रहे हैं और अपनी बेटी के बेहतर भविष्य को संवारने में लगे हुए हैं।

कई बड़े नक्सली हमलों में रह चुके हैं शामिल

दोनों नक्सली 2002 से 2023 (रतन सिंह) और 2005 से 2023 (हिरोंदा) तक सक्रिय रहे। इस दौरान वे कोण्डागांव, कांकेर, राजनांदगांव, गरियाबंद, धमतरी और नारायणपुर जैसे जिलों में कई गंभीर नक्सली वारदातों में शामिल रहे।

  • 2009 में राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा कोरकोट्टी में हुए हमले में भी इनकी भूमिका रही, जिसमें तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और 28 अन्य जवान शहीद हुए थे।

  • 2011 में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश पवार पर हमले में भी ये शामिल थे, जिसमें 9 जवान शहीद हुए थे।

अब सिर्फ बेटी का भविष्य है प्राथमिकता

बगावत और खून-खराबे की जिंदगी छोड़ने के बाद आज ये दंपत्ति शांतिपूर्ण जीवन जी रहा है। समाज ने भी उन्हें स्वीकार किया है और वे अब अपने बच्ची के साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत कर चुके हैं।

जंगल की बंदूकें जब प्रेम में पिघल जाएं, तो समझिए इंसानियत की जीत हो चुकी है। ये कहानी इस बात की मिसाल है कि प्यार वाकई में बंदूक से बड़ा होता है।

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